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✍️ शब्दकार ©
🌴 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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याद फिर से तिरी आ गई,
बेसबब और तड़पा गई।
आज देखा है सपना हसीं,
ख्बाब में बेवफ़ा छा गई।
चाँदनी रात की बेबसी ,
मेरे हिस्से में अब आ गई।
अब नहीं है किसी की फ़िकर,
मेरा दिल कोई भरमा गई।
कँपकँपी से मैं थर्रा गया,
सारी रग - रग को गरमा गई।
रात काली न काली रही,
रोशनी उनके आने से आ गई।
आँख खुलती 'शुभम' अब नहीं,
नींद ख्वाबों को भरमा गई।
🪴 शुभमस्तु !
०६०५.२०२१◆५.४५आरोहणम मार्तण्डस्य।
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