बुधवार, 19 मई 2021

बालू और समय 🕰️ [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                         [1]

बालू-सा नित फिसलता,समय सलोना मीत।

ज्यों मुट्ठी  बालू भरी, जाती पल  में    रीत।।

जाती   पल  में  रीत, रिक्त कर दोनों   होते।

औरों  को   दें  दोष, लोग  जो रहते   सोते।।

'शुभम'समय के साथ,चला चल मानव सालू।

दुहराता  इतिहास, नहीं यदि फिसले  बालू।।


                         [2]

बालू का कण-कण गहें,पल -पल आठों याम

समय सदा गतिशील है,पल भर नहीं विराम।

पल  भर नहीं  विराम,आपदा लगती   भारी।

कटे  न  काटे शाम, लगी  हो जब   बीमारी।।

'शुभम' सुहागी   रात, ढुलकती  जैसे आलू।

छिपती   घाटी   बीच,सरकती जैसे    बालू।।


                         [3]

बालू   जैसा   रूक्ष   है,  आलू जैसा  गोल।

सरक रहा है पल सदा,समय बड़ा अनमोल

समय बड़ा अनमोल,रोक कोई  कब पाया।

ढलता  साँचे बीच,समय ने जगत  बनाया।।

'शुभम ' समय  है ईश,नहीं वह वानर  भालू।

करता  जो   उपयोग,बनेगी मक्खन   बालू।।


                         [4]

बालू  की  दीवार - से,  रिश्ते मिलते   धूल।

स्वार्थ भाव पर जो टिके,देते हैं बस  शूल।।

देते  हैं   बस  शूल, कष्ट ही देते  मन  को।

नहीं  प्रेम  का भाव, महत्ता देते धन   को।।

'शुभम' आज के लोग,बहुत ही बेढब चालू।

होते   वे   भूसात,  सरकती  जैसे    बालू।।


                        [5]

बालू पाहन से बनी,घिस-घिस सरिता- धार।

जल को लेती अंक में,ज्यों शिशु अंक सँवार।

ज्यों शिशु अंक सँवार,खिलाती  कोई माता।

लुटा रही वह प्यार,बनाता सजल  विधाता।।

'शुभम' भवन  का मूल,धरा ऊँची  या ढालू।

साथ सुघर  सीमेंट,सुदृढ़ बनती तब  बालू।।


🪴 शुभमस्तु !


१७.०५.२०२१◆१.००पतनम मार्तण्डस्य।


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