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✍️ शब्दकार©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शब्दकोश के सागर में जा
पाहन - से रंग बिरेंगे
शब्द खोजकर
कविता कामिनि को
सज्जित करना
उचित कहाँ तक!
भावों के अनुरूप
शब्द ही उचित सदा ही।
हो जाता रसभंग
वहीं जब पढ़ते-पढ़ते
पाठक की गति में
अवरोधक आए!
छोड़ पठन रचना का
कर शब्दकोश ले
अर्थ खोजने में खो जाए!
रसराज शृंगार
रस के कोण - उभार
न रस दे पाएँ!
रस पाने की लालसा
भटक -अटक जाए!
फिर कैसे कोई
उसको कविता बतलाए!
लगी होड़ जब
केशव कालिदास बनने की
कबिरा सूर बिहारी तुलसी भी
पीछे हट जाएँ ,
बेचारे क्या कर पाएँ!
रसानुकूल हो
शब्दों का विन्यास,
कवि का सफ़ल प्रयास,
न हो कुछ भी सायास,
वही कविता
काव्य- रसिकों में
गई सराह,
चले जो अपनी सच्ची राह।
शिल्प औऱ भाव
सहज संकल्पित भरित प्रवाह
सरितवत कलकल
स्वर उत्साह,
वही करती पाठक
श्रोता में लय गति का
अवगाह।
वही है 'शुभम'
सत्य सुंदर शिवता की थाह।
करता है हर पाठक
वाह! वाह !! वाह!!!
🪴 शुभमस्तु !
२०.०५.२०२१◆४.३०पतनम मार्तण्डस्य।
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