◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
दर्द का दायरा तेज बढ़ता गया।
गैर पर दोष इन्सान मढ़ता गया।।
अपना भी गिरेबाँ जरा झाँकिए,
और के शीश पर यार चढ़ता गया।
आपदा को कमाई का जरिया बना,
दूसरों के लिए मंत्र पढ़ता गया।
पाप की खाद से रोग फूला फला,
रँग महल पाप के ही गढ़ता गया।
जैसा बोया 'शुभम' कटना है वही,
छ्द्म द्वारों से मनुज कढ़ता गया।
🪴 शुभमस्तु !
०१.०५.२०२१◆३.००पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें