बुधवार, 19 मई 2021

ऊपर वाले को(?) देना है 🕺🏻 [ व्यंग्य ]


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✍️ लेखक © 


🕺🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 


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                 ऊपर वाला !ऊपर वाला !!ऊपर वाला!!!ऊपर वाले का इतना अधिक महत्त्व यदि किसी ने जाना और पहचाना है तो वह मानव ही है।अरे!वही मानव ,जिसमें मानवता कूट - कूट कर भरी है। दानव तो किसी को अपने से ऊपर मानता ही नहीं , जो ऊपर वाले को समझेगा,जानेगा, मानेगा!यदि ऊपर वाले को किसी ने महत्त्व दिया है ,तो वह जीव मानव ही है।वह ऊपर वाले को कभी भूलता ही नहीं।


             दवाओं के मनमाने दाम लेने पर , ऑक्सीजन के आसमानी दामों में ब्लैक करने पर,मेडिकल स्टोर, नर्स, डॉक्टर,शव वाहन के चालक परिचालक, श्मशान की लकड़ी आदि अंतिम संस्कार सामग्री बेचने पर, रेमडेसीवर आदि जीवन रक्षक दवाएँ, इंजेक्शन आदि में एक के पचास वसूलने पर, इन सबको ऊपर वाले को देना पड़ता है।हर नीचे वाला अपने ऊपर वाले को दे रहा है अथवा पहुँचा रहा है।इसलिए चोरी, ब्लैक मार्केटिंग, मजबूरों का गला काटना,किसी के द्वारा नहीं ले पाने की सामर्थ्य नहीं होने पर उनकी हत्या कर देना इनका धर्म हो गया है।


              ये ऊपर वाले भी कितने बेहया ,बेशर्म और मानव के नाम पर कलंक हैं कि इन्हें उस ऊपर वाले का होश ही नहीं है,जो सबसे ऊपर है।सबसे ऊपर वाला उत्कोच नहीं लेता। किसी को क्षमा भी नहीं करता।उसकी अदृश्य आँखों से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है।उसके सी सी टी वी कैमरे हर जगह लगे हुए हैं। सारे दृश्य उनमें सुरक्षित हो रहे हैं। जब ये नीचे वाले मानव नामधारी देवताओं के पुजारी, मंदिर मस्ज़िद, चर्च के अधिकारी वहाँ पहुँचेंगे, तो किस ऊपर वाले को क्या क्या पहुँचाया : का हिसाब गिन-गिन कर लिया जाएगा। किसके ऊपर कौन है !ये तो पहुँचाने वाले अच्छी तरह जानते हैं।ऊपर वाले को देना है ,इसलिए सामने वाले का गला घोंटना उनका अनिवार्य धर्म है।मेडिकल स्टोर से हॉस्पिटल , हॉस्पिटल से शव वाहन और श्मशान / कब्रिस्तान , सब जगह ऊपर वाले बैठे हुए हैं। ऊपर वालों की सूची इतनी छोटी भी नहीं है ,वे विधान सभा, लोक सभा और न जाने कहाँ विराजमान हैं।यदि इन ऊपर वालों के पास उनके हिस्से का नहीं मिलता तो वे अपने नीचे वाले को डंडे का दंड देने से भी नहीं चूकते। 


             सुना है ईमानदारी के मामले में चोर बहुत ईमानदार होते हैं। वे अपने हर ऊपर वाले को उसका शेयर पूरी ईमानदारी से औऱ समय पर पहुँचा देते हैं। ईमानदारी हो तो चोरों जैसी। चोरों औऱ उत्कोच ग्राही ' भले मानुषों ' की ईमानदारी सराहनीय है। वे अपने हर ऊपर वाले का पूरा सम्मान करते हुए उनका पूरा ध्यान ही नहीं रखते , वरन उनके बीबी - बच्चों की सेवा, उनकी सब्जी ,दूध, दाल , फल ,कपड़े आदि का भी अपने परिवार से भी ज़्यादा ध्यान रखते हैं।आख़िर उन्हीं की छत्रछाया में ही तो उन्हें नीचे से सत्य औऱ ईमान की खुलेआम हत्या करके अपनी रोटी - रोजी कमानी है। 


            नियमित वेतन से क्या होता है! ठाठ बाट की जिन्दंगी बिताने के लिए 'ऊपर की कमाई' एक अनिवार्य धर्म है।किसी का कोई काम करो तो उसकी अंगुली पकड़ कर पहुँचा नहीं ,गर्दन ही पकड़ लो ,तभी कुछ निकल सकता है। तेल तो तिल से निकलेगा न! जिसका भी काम करो ,उसे मूँड़ ही डालो।भैंस समेत खोया करना ही जरूरी है। आख़िर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी! उसे हलाल तो होना ही पड़ेगा। इसी प्रकार के आदर्श वाक्य हर नीचे से ऊपर वालों को रटे हुए हैं।जिनकी आदर्श-पटरी पर चलना उनका पवित्र धर्म है।भला आजकल की मँहगाई के जमाने में एक वेतन से काम भी कहाँ चलता है? इसलिए ऊपरी कमाई का जरिया होना उनके लिए लाज़मी है।


      हर ऊँट समझ रहा है कि वही सबसे ऊपर है।इसीलिए वह उड़ता है आसमान में,नहीं जानता कि वह किसी भू पर है। मान बैठा है बस वही पवार सुपर है।पर सुप्रीम को भूल बैठा है, क्योंकि अपने में रस्सी की तरह ऐंठा है, भले ही वह बहुत निम्न है,हेटा है। देह से आदमी है ,परंतु रँग बदलता हुआ करकेंटा है। पता नहीं कब कौन- सा रंग बदल ले! कभी साँपनाथ तो कभी नाग नाथ।उसे है केवल पैसे का भरोसा ,उसी का साथ! दिखाई नहीं देता उसे अपना सही पाथ।कभी मेज के नीचे ,कभी किनारे से ,कभी किसी कौने में,पटाना जानता है दूसरे नर देह को वह अँधेरे में।पर अब तो खुलेआम 'खेला' हो रहा है।आदमी कहने भर को आदमी है , वह पाषाण का ढेला हो रहा है।किसी का सिर फूटे या जान जाए!पर वह अब नहीं वैसा कि किसी की मजबूरी मान जाए!भले ही बकरे की जान जाए , पर उसे खाने का 'सवाद' कहाँ आए? 


             जंगल के नरभक्षियों औऱ मानव में केवल देह का भेद है।शेर, चीता, भालू, लकड़बग्घा, ईमानदार नरभक्षी हैं।लेकिन आदमी आदमी को ही 'ऊपर वाले को देना है,' के नाम पर दिन दहाड़े खा रहा है। सबसे ऊपर वाले को भी कुछ देना है ,यह भूले जा रहा है।वहाँ न पैसा चलता है , न उत्कोच, न नेतागिरी न गुंडागिरी, न सिफ़ारिश , गुजारिश। वहाँ तो बस चलती है सचाई खालिश।नहीं चलती वहाँ कोई तेल मालिश। 


 🪴 शुभमस्तु ! 


 १५.०५.२०२१◆३.४५पतनम मार्तण्डस्य। 


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