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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ज्ञान बाँटने की लगी, पढ़े-लिखों में होड़।
चुरा - चुराकर बाँटते, ज्ञान सभी जी तोड़।।
स्वयं कभी करते नहीं,औरों को दें ज्ञान।
ज्ञानी ऐसे देश के, इन पर हमें गुमान।।
लूट मची है ज्ञान की,लूट सके तो लूट।
लूट न पाया ज्ञान जो, हो जाएगा हूट।।
व्हाट्सएप पर ज्ञान की,आती है नित बाढ़।
जनसेवा में व्यस्त हैं, दुखती अपनी दाढ़।।
मुखपोथी पर भेजते, बना वीडियो लोग।
कर दें छूमंतर सभी, कोरोना का रोग।।
चिड़ियों जैसी ट्वीट का, देते छोटा मंत्र।
परहित में टुटिया रहा, भारत का जनतंत्र।।
करनी कड़वी माहुरी,कथनी जैसे खाँड़।
नौटंकी में गा रहा, जैसे कोई भाँड़।।
देख - देख नित ज्ञान का,मोबाइल भंडार।
बिना किए ही हो रहा,अपना बेड़ा पार।।
मंचों पर देखो खड़ी, दो- दो सौ की भीड़।
पर्वत की वनभूमि पर, खड़े हुए ज्यों चीड़।।
मास्क लगाने के लिए,देते पर उपदेश।
स्वयं खड़े नंगे बदन,धर ज्ञानी का वेश।।
जारक की चोरी करें,निज रक्षा का स्वार्थ।
नाम छपा अख़बार में,करते वे परमार्थ।।
माहुरी =विषैली।
जारक= ऑक्सिजन।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०५.२०२१◆३.३०पतनम मार्तण्डस्य।
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