बुधवार, 19 मई 2021

एक धरा है एक गगन है! 🏕️ [ गीत ]

 

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✍️ शब्दकार©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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एक   धरा  है   एक   गगन है,

सबका     एक      जन्मदाता।

छीना- झपटी  मार  काट कर,

मानव    क्यों   तू    इतराता!!


बड़े   हो  गए  विकट  सपोले,

ज़हर रात -  दिन   उगल  रहे।

सत्ताधारी   बन    जाने    को,

देखो    कैसे    विकल   रहे!!

पत्थर   हैं    जिनके  सीने  में,

निर्मम   है    उनकी     माता।

एक  धरा   है   एक गगन  है,

सबका   एक     जन्मदाता।।


काँटे  से   ही    निकले काँटा,

समय   वही   अब  आया है।

भारत माता  का  उर कोमल,

कैसे   अब     थर्राया     है!!

यहीं जन्म  लेकर  मर जाता,

पीता  जल    भोजन खाता।

एक   धरा   है  एक गगन है,

सबका     एक  जन्मदाता।।


शठ  से  शठता   करनी होगी,

क्षमा   नहीं       कर    पाएँगे।

बढ़ी अगर  थोड़ी ज़बान  तो,

काट   उसे      हम    लाएँगे।।

ये   मानव   दानव  से रिश्ता,

तृण भर   नहीं   निभा पाता।

एक  धरा  है  एक  गगन  है,

सबका    एक   जन्मदाता।।


यमुना   गंगा  का पावन जल,

लाल    नहीं       होने     देंगे।

देखेगा    तिरछी   नज़रों   से,

हम   प्रतिशोध   शीघ्र  लेंगे।।

हिन्दू मुस्लिम   भाई -   भाई,

ये    सब  ढोंग   नहीं  भाता।

एक  धरा    है  एक गगन है,

सबका   एक    जन्मदाता।।


राम कृष्ण की इस धरती पर,

रावण   कंस   न   रह   पाए।

अहंकार   के   पुतले भर वे,

चाह   रहे  जो    छा   जाए।।

एक    द्वार    से  आया  बंदे!

एक  राह  से    ही    जाता।।

एक  धरा  है  एक  गगन  है,

सबका   एक    जन्मदाता।।


न्याय प्रकृति का जिस पल होता,

कोई      नहीं        ठहर     पाता।

गरज   रहा   अंबर   में  बेढब,

मेघों     का  दल     मँडराता।

पवन - झकोरा  उड़ा शून्य में,

देता    मिटा     छली    नाता।

एक   धरा   है  एक   गगन है,

सबका    एक     जन्मदाता।।


आओ  एकसूत्र   में   बंधकर,

नयन -  खुमारी    तोड़ें   हम।

एक - एक  कर  मार  सपोले,

बना देश का  समय 'शुभम'।।

अब तो उसको समझ लिया है

'शांतिदूत'    जो     कहलाता।

एक   धरा   है   एक  गगन है,

सबका    एक     जन्मदाता।।


🪴 शुभमस्तु !


१९.०५.२०२१◆५.३०पतनम मार्तण्डस्य।


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