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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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धरती माता धन्य तू, हम तेरी संतान।
लेती पहले अंक में,ममता, धीर महान।।
सहती कितने कष्ट माँ, भरे न फिर भी आह,
धरती सबको धारती, हम सबको वरदान।
अन्न, दूध, फ़ल, फूल का,माँ अवनी भंडार,
तुझसे ही जीवन मिला,देती माँ तू ज्ञान।
पर्वत, सागर, झील,सर,भरे तरल तालाब,
गंगा, यमुना, सिंधु में,कर्ता का अभिमान।
वृक्षों पर कलरव करें,कोयल,तोते, मोर,
गौरैया घर में करे,चूँ - चूँ का शुभ गान।
वन में चीता, शेर हैं, भालू, हाथी, गौर,
गाय, भैंस सब गाँव में,देते पय का दान।
गेहूँ, जौ, तिल, चणक के, लहराते हैं खेत,
सरसों पीली नाचती,मह-मह अरहर, धान।
गेंदा, बेला, चाँदनी, खिलते कमल,गुलाब,
जूही, रानी रात की, धरती के अहसान।
'शुभम'धरा का प्यार पा,जीता मानव मात्र,
उऋण नहीं होना कभी,आन मान शुचि शान
🪴 शुभमस्तु !
३१.०५.२०२१◆१.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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