रविवार, 27 मई 2018

दुनिया रैनबसेरा है

ये     दुनिया     रैनबसेरा      है,
कुछ   तेरा  है   ना      मेरा   है।

एक  आता  है   एक   जाता  है,
बिस्तर   समेट  उठ   जाता   है।

खुशी    कहीं     पर   रोदन   है,
ये प्रकृति     का   संशोधन    है।

नित  उजला   कहीं    अँधेरा  है,
 कहीं  संध्या  कहीं     सवेरा  है।1
ये जीवन....

बागों   में    कलियाँ      मुस्काती,
अम्बर   में   चिड़ियाँ     मंडराती।

बिजली   गिरती     तूफ़ाँ    आते,
मानव पशु खग  कितने ढह जाते।

आने     जाने     का      घेरा   है,
कहीं  आबादी  कहीं  खेरा    है।2
ये दुनिया ...

 कोई  बिछा   रहा   अपनी चादर,
कोई   देश    बचाने     न्योंछावर।

कोई   भूखा  ही   सो   रहा  यहाँ,
कोई धनमद   में   जी   रहा यहाँ।

कहीं   ऐश     कहीं     अँधेरा   है,
नित  कालचक्र   का   फेरा   है।3
ये दुनिया....

कोई  रात - रात   भर   जगता है,
कोई   सोकर  कभी न  अघता है।

खाकर  गोली   भी      नींद   नहीं,
आकंठ    तृप्त     संजीद     नहीं।

बस   आने -जाने     का  फेरा है,
कोई बिना  कर्म   वो   कमेरा है।4

कोई    केवल सपने    रहा  देख ,
कोई बना कूप   की    मूढ़   मेष।

कहीं  हाथ का तकिया मिला चैन,
कटती न कहीं  मखमल  पे   रैन।

पत्थर  पे   भी   सुखद  सवेरा है,
निज  कर्मों का  सदा  उजेरा  है।5
ये दुनिया....

मखमल  में   कंकड़    चुभते  हैं,
कहीं कंकड़   मखमल   बनते हैं।

 नव किरणों  संग उठ    जाना है,
कोई अपना कोई न   बिराना  है।

कहीं  कुहरा   सघन   अँधेरा  है,
सूरज  का    सुफल    सवेरा है।6

ये      दुनिया       रैनबसेरा    है,
कुछ   तेरा     है    ना     मेरा है।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

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