अब तक था गरम में तन,
अभी और गरम रहने दे।
लपटों में रहता था,
कुछ और लपट रहने दे।1
दिन में न चैन तन को
निशि में न नींद आती।
ठंडा अच्छा लगता ,
लू ठंडी चलने दे।।2
ठंडा - ठंडा पीना ,
मुझे अति प्रिय लगता है।
तरबूजे लाल मीठे,
बड़े स्वाद से खाने दे।।3
लंगड़ा नीलम दशहरी,
आमों का मौसम है।
खरबूज की रंगत का,
कुछ असर भी रहने दे।।4
शीतल जल जीवन है,
इस तन मन की खातिर।
दो नयन के पानी को ,
इतना मत मरने दे।।5
मत आँधी तूफ़ाँ ला,
वैसे ही बहुत आँधी।
किसी धर्म की आँधी को,
इतना मत बहने दे।।6
वैसे भी बहुत गरमी,
सियासत ने बढ़ा दी है।
तू अपनी गरमी को,
थोड़ा तो नरम कर दे।।7
किसी शजर की छाया में,
शांती भी सुकूँ अच्छा।
कोई चैन से जी पाए,
कोई शजर न कटने दे।।8
द्रुम वर्षा के कारण,
ऑक्सीजन - स्रोत बड़े।
उनकी हरीतिमा से,
आँखें तर करने दे।।9
वर्षा सकुचाई है,
दो जेठ खड़े दर पर।
दो जेठों के खातिर ही,
घूँघट तो करने दे।।10
"शुभम" गरमी तो तपस्या है,
तप का फल सुंदर हो।
तपकर धरती माँ की,
हर प्यास भी बुझने दे।।11
💐शुभमस्तु!
©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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