ताक-झाँक होने लगी,
शौचालय के छेद।
परदे में कुछ ना रहे,
गोपनीय कोई भेद।।1
ले कर में आधार निज,
पंजीकरण कराओ ।
शौचालय तब ही खुले,
जब सिमसिम चिल्लाओ।।2
बैडरूम की अलग चिप,
पर एक ही आधार।
सीसी टीवी से जुड़ा,
रहे कार्ड आधार।।3
लखनऊ दिल्ली बैठकर,
देख सके सरकार।
फ़ोटो ना देना पड़े,
बार-बार हर बार।।4
बनी किचन में दाल है,
या बनता शाही पनीर।
खुशबू लेते दूर से,
अधिकारी रण धीर।।5
नाले नाली किचन की,
सबका चिप निर्माण-
होने अब लग जाएगा,
होगा जन - कल्याण।।6
क्या खाया निज उदर में,
उसकी आख्या पूर्ण।
चिप से ही मिल जाएगी,
ज्यों गर्भान्तर भ्रूण।।7
भरी तिजोरी नोट से,
इसकी चिप नहि कोय।
नेताजी की मौज है,
सब रहस्यमय होय।।8
शिक्षक और गरीब पर,
सख्त - सख्त कानून।
आम आदमी पिस रहा,
नेता मौज में दून।।9
हर घर के हर द्वार पर,
चिप चिपकानी मित्र।
झोपड़पट्टी में भी मिलें,
दर्शित करने हर चित्र।।10
नेता जी ईमानदार सब,
जनता जी बेईमान।
खाल खींचने के लिए,
हर उपाय का ध्यान।।11
महंगाई की मार में,
जाति धर्म घुस जांय।
फूट डाल लूटें प्रजा ,
मुखौटे में शरमाईं।।12
ताक -झाँक कर लूटना,
मॉर्डन विधि की खोज।
नई साइंस ने दी बता ,
बिगड़े चाहें रोज़।।13
डाल अंगुलियाँ छेद में,
छोड़ा करते रोज।
"शुभम"नियम नित बदलते,
क्या कर ले जन - फौज?
शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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