रविवार, 27 मई 2018

शब्दातीत माँ

तेरी  वेदना    का  मैं   वेद  हूँ
तेरी  साधना   का  मैं स्वेद  हूँ,
तू तपस्या है मेरी माँ त्याग की
तेरे   ध्यान का  मैं   ध्येय   हूँ।

तू  सिंधु  है   माँ   मैं  बिंदु  हूँ
तू   सूर्य   है    मैं      इंदु    हूँ
तू   धारिणी   तुझ    पर  धरा
तू पुष्प  है    मैं    सुंगन्ध   हूँ।

तू प्राणदात्री मैं लघु कण तेरा
तू  वृहत   मैं   नव  अणु तेरा
माँ   तू    मेरी      ब्रह्मांड   है
तू समय  है     मैं   क्षण तेरा।

तू   व्याप्त     है     संसार   में
तू   सृष्टि हैं     तेरा    प्यार  मैं
तेरे बिना जीवन -ज्योति  क्या
माँ    विद्युती   बस    तार   मैं।

महाकाव्य तू  मैं   लघु  शब्द हूँ
तुझे  जानूँ  क्या   निः शब्द   हूँ
तू  साहित्य -सागर    माँ    मेरी
शब्दातीत  तू  मैं   अशक्त    हूँ ।

तू  विज्ञान   है    मैं  तम    निरा
ज्योतिस्वरूपिणी  मैं  कन  तेरा
तुझसे प्रकाशित तन   मन   मेरे
जग   में     महत्तर    धन   मेरा।

कारण  तू   माँ    मैं    कार्   हूँ
मैं    अंश   स्नेहिल     सार   हूँ
माँ " शुभम"  तेरी स्मृति  अमर
तेरे    उदर   का     प्यार     हूँ।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...