नेताओं को कुछ वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है। नेताओं के
कुछ प्रमुख वर्ग निम्नवत हैं:----
1.दल भक्त नेता : यह नेता का वह प्रथम वर्ग है , जिसमें नेता एक ही दल में रहकर अपना जीवन
सफल करने में विश्वास करता है।वह चाहे विधायक या मंत्री बने या न बने ,पर स्तम्भ की तरह
एक ही दल को समर्पित भाव से अपना स्वीकार कर लेता है।
जीना भी यहीं ,मरना भी यहीं।
2.दलदल भक्त नेता :दल दल नेता राजनीति के दलदल में पड़कर कई प्रकार के दलदलों की महक
का आनन्द प्राप्त करता हुआ एक परिपक्व नेता बनने में विश्वास करता है। इसलिए यदि सुबह वह
एक दल में है तो दोपहर को लंच किसी और दल में करता है और शाम का डिनर नाश्ते वाले दल
के साथ भी हो सकता है और किसी तीसरे के साथ भी कैंडल लाइट डिनर का आनन्द हल्के
हल्के अंधकार में ले सकता है।बहुत सारे दलों का अनुभवी यह नेता बार बार पालियाँ बदल
कर राजनीतिक कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी बन जाता है । इसको जहां भी मलाई मिलती है, ऊँची
कुर्सी मिलती है, बस उसी के साथ हाथ मिला लेता है , कभी कभी गले भी मिल जाते हैं। ये नेता
अवसरवादी नेता भी कहे जातेहैं।
" जैसी बहे बयार तबहिं तैसौ रुख कीजे"-- में विश्वास करने वाले ये नेता बिकाऊ नेता भीकह दिए जाते हैं , क्योंकि इनकी अपनी कीमत समय समय पर घटती बढ़ती रहती है।ये बस मलाई में विश्वास करते हैं।
3. नेता -भक्त नेता:- नेता भक्त नेता का अपना कोई निजी व्यक्तित्व नहीं होता। वह तो जिस नेता या नेत्री का भक्त होता है, बस उसी की पीछे-पीछे चलने में ही अपने जीवन की सार्थकता मानता है। इसको "भेड़ -भक्त नेता " भी परिभाषित किया जाता है। ये दल का नही व्यक्ति का वफ़ादार होता है। उसके गले में उसका ऊपर वाला जो पट्टा लटका देता है, उसी के अनुरूप ये गाता - बजाता है। बस पीछे पीछे चलकर अनुगमन करना ही
इसका उद्देश्य है। नारे लगाना, बेनर चमकाना, बेनर बांधना, जिंदाबाद , मुर्दाबाद करना -ये सब, इसी प्रकार के नेता का काम होता है।
4. लोटा भक्त नेता : जिधर का पलड़ा भारी , उधर नेताजी की सवारी। इसमें कोई पेंदा नहीं होता, कब किधर लुढ़क जाए, कोई पता नहीं। ये न किसी दल का, न दलदल का , न भेड़ भक्ति में आसक्ति, केवल अपने स्वतंत्र चिंतन के बल पर स्वविवेक से स्वतंत्र निर्णय लेता है। इसीलिए इसे धक्के भी कुछ ज्यादा ही खाने पड़ते हैं।
अरे भई! इसमें सोचने की क्या बात! अपना अपना सिद्धान्त है। नेताओं से अधिक सिद्धान्तवादी भला हो भी कौन सकता है। इसीलिए लोकतंत्र को प्रणाम किया जाता है।
नेता -वर्गीकरण का यह शोधपत्र
यहीं विराम लेता है।
शेष फिर कभी।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"
कुछ प्रमुख वर्ग निम्नवत हैं:----
1.दल भक्त नेता : यह नेता का वह प्रथम वर्ग है , जिसमें नेता एक ही दल में रहकर अपना जीवन
सफल करने में विश्वास करता है।वह चाहे विधायक या मंत्री बने या न बने ,पर स्तम्भ की तरह
एक ही दल को समर्पित भाव से अपना स्वीकार कर लेता है।
जीना भी यहीं ,मरना भी यहीं।
2.दलदल भक्त नेता :दल दल नेता राजनीति के दलदल में पड़कर कई प्रकार के दलदलों की महक
का आनन्द प्राप्त करता हुआ एक परिपक्व नेता बनने में विश्वास करता है। इसलिए यदि सुबह वह
एक दल में है तो दोपहर को लंच किसी और दल में करता है और शाम का डिनर नाश्ते वाले दल
के साथ भी हो सकता है और किसी तीसरे के साथ भी कैंडल लाइट डिनर का आनन्द हल्के
हल्के अंधकार में ले सकता है।बहुत सारे दलों का अनुभवी यह नेता बार बार पालियाँ बदल
कर राजनीतिक कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी बन जाता है । इसको जहां भी मलाई मिलती है, ऊँची
कुर्सी मिलती है, बस उसी के साथ हाथ मिला लेता है , कभी कभी गले भी मिल जाते हैं। ये नेता
अवसरवादी नेता भी कहे जातेहैं।
" जैसी बहे बयार तबहिं तैसौ रुख कीजे"-- में विश्वास करने वाले ये नेता बिकाऊ नेता भीकह दिए जाते हैं , क्योंकि इनकी अपनी कीमत समय समय पर घटती बढ़ती रहती है।ये बस मलाई में विश्वास करते हैं।
3. नेता -भक्त नेता:- नेता भक्त नेता का अपना कोई निजी व्यक्तित्व नहीं होता। वह तो जिस नेता या नेत्री का भक्त होता है, बस उसी की पीछे-पीछे चलने में ही अपने जीवन की सार्थकता मानता है। इसको "भेड़ -भक्त नेता " भी परिभाषित किया जाता है। ये दल का नही व्यक्ति का वफ़ादार होता है। उसके गले में उसका ऊपर वाला जो पट्टा लटका देता है, उसी के अनुरूप ये गाता - बजाता है। बस पीछे पीछे चलकर अनुगमन करना ही
इसका उद्देश्य है। नारे लगाना, बेनर चमकाना, बेनर बांधना, जिंदाबाद , मुर्दाबाद करना -ये सब, इसी प्रकार के नेता का काम होता है।
4. लोटा भक्त नेता : जिधर का पलड़ा भारी , उधर नेताजी की सवारी। इसमें कोई पेंदा नहीं होता, कब किधर लुढ़क जाए, कोई पता नहीं। ये न किसी दल का, न दलदल का , न भेड़ भक्ति में आसक्ति, केवल अपने स्वतंत्र चिंतन के बल पर स्वविवेक से स्वतंत्र निर्णय लेता है। इसीलिए इसे धक्के भी कुछ ज्यादा ही खाने पड़ते हैं।
अरे भई! इसमें सोचने की क्या बात! अपना अपना सिद्धान्त है। नेताओं से अधिक सिद्धान्तवादी भला हो भी कौन सकता है। इसीलिए लोकतंत्र को प्रणाम किया जाता है।
नेता -वर्गीकरण का यह शोधपत्र
यहीं विराम लेता है।
शेष फिर कभी।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"
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