★1★
आँधियाँ तो यहाँ
बारहों मास चलती हैं,
बना करके बवण्डर
बगूले साथ चलती हैं ,
हर एक मौसम
आंधियों का कहर ढाता है,
हवाएँ क्यों पहर दर पहर
यूँ ही मचलती हैं।
★2★
कभी नेताओं की आँधी है
सियासत का ये बलवा है ,
रेला रैलियों का भी
उजड़ता चमन सबका है,
कोई भूखा रहे नंगा
उन्हें बस धूल से मतलब,
यहाँ फाके की नौबत है
वहाँ मेवों का हलवा है।
★3★
टूटे गिरे खम्भे ध्वस्त
सारी नीतियाँ भूपर,
उड़ी नैतिकता की बल्ली
फ़िक्र उनको नहीं जूं भर ,
धूल नारों की उड़ाते
हुए हैं कान सब बहरे ,
उन्हें चिन्ता न नीचे की
उड़ रहे धूल के ऊपर।
★4★
मँहगाई की आँधी में
प्रगति का भान होता है ,
पेट्रोल प्याजों से यहाँ
सुख - संधान होता है,
रसायन से बने खोया
दूध की आँधी,
लौकी में रसायन का असर
विज्ञान देता है।
★5★
नारी के लिए आदर्श की
बस बात होती है,
हवस के दानवों के हाथ में
अबलाएँ रोती हैं,
ये तूफान कब तक चलेगा
कोई बताएगा ?
गिर गए मस्तूल इंसां के
ये मानव -जात होती है।
★6★
गिर गए रूख इंसां के
बदले हैं रुख कब से!
ध्वस्त नीवें मकानों की
ये घर रह गए कब से!
दिखावे में मग्न मानव
किसी से क्या छिपा चेहरा?
इन आंधियों के साथ में
ओले गिरे जब से।
★7★
कभी तूफान आते हैं
कभी भूकम्प होता है,
तकिया लगा फुरसत का
मनुज निष्कम्प सोता है,
परिभाषा ही बदली है
किसी की भाषा बदली है,
"शुभम"इंसान अपने हाथ
कांटे आप बोता है।
शुभमस्तु।
©✍🏼 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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