पल -पल हम ही बीतते,
कहते बीता काल।
समय वहीं है था जहाँ ,
विकट समय -संजाल।।
समय खड़ा हम दौड़ते,
गिरते , मरते रोज़।
हमें बिताने की घड़ी ,
की होनी है खोज।।
झूठी ये घड़ियाँ सभी ,
जो कहें समय की चाल।
समय कभी चलता नहीं,
हम चलते लय-ताल।।
आते - जाते हैं हमीं,
समय न आए जाय।
सूरज चाँद सदा वहीं ,
हम जीवें मर जायँ।
समय सत्य है और सब,
मिथ्या झूठ असार।
काल सदा स्थिर रहा,
गतिमय जगत निसार।।
पड़े प्रेम में जब युवा,
युवती पहली बार।
धरती पर उनने किया,
प्रेम यह पहली बार ।।
स्वाभाविक यह भूल है,
लगे उन्हें निज प्रेम ।
अरबों ने पहले किया,
वही प्रेम का फ्रेम।।
सबको लगता प्रेम निज,
मौलिक पहला प्यार।
नवीकरण करता रहा,
यह सारा संसार ।।
ऐसे जग के प्रेम के ,
साक्षी तारे चाँद।
लगे प्रेमियों को यही,
ऐसी महक न नाद ।।
'कोई न जाना सत्य यह,
जो मैं जाना आज।'
मानव की यह भूल है,
अहंकार का ताज।
मतलब हमें न सत्य से,
यह विवाद का मूल।
"मेरा सत्य" बचा रहे ,
कोई गिरे भाड़ या धूल ।।
'मैं ' 'तू' का आधार ही ,
कलह , युद्ध, संघर्ष।
होती हत्या सत्य की,
मिटता उर का हर्ष।।
'जो मैं कहता सत्य है',
सत्य कहा ना जाय।
पूँछ पकड़ कर झूठ की ,
ये मानव इतराय।।
'परम् सत्य' 'मम सत्य ' का ,
सारा यहाँ विवाद।
'मेरा सत्य' असत्य की,
परिभाषा - सम्वाद।।
तेरे मेरे सत्य के ,
न्यायालय में वाद।
'परम् सत्य' से दूर जो,
बढ़ते नित्य विवाद ।।
छाया सत्य न बन सके,
नर - नारी की मित्र।
हम ही छाया सत्य की ,
"शुभम" जगत के चित्र।।
इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें