गुरुवार, 31 मई 2018

आँखों से संसार है

आँखें    हैं       तो    संसार    है ,
वरना     जग     अन्धकार     है।

चाहो     अगर    न  बुरा  देखना,
निज     आँखों   पर पट्टी रखना।

बनावटी      अंधे   भी    तो    हैं,
जो चाहें    वे    लखते     वो   हैं।

बिन देखे दिख जाता बहुत कुछ,
पाती  आँखें    तरल  नयनसुख।

ज्ञान -चक्षु  जब   खुलते अन्दर,
अंदर - अंदर     लगता    सुंदर।

चर्म -चक्षु     बाहर    ही    देखें,
मर्म हृदय के   नहिं    अवलोके।

कुछ   तो करो  उपेक्षित   दृग से,
खुले    गगन में  रह  लो  खग से।

सब   कुछ  नहीं   देखना   होगा,
तब ही   जीवन   सुखमय होगा।

दृग   मूंदे  से  रात    न    कटती,
तन - आवश्यकता  ना   मिटती।

जिसने  देखा    नहीं  जगत को,
उससे  पूछो  नयन   सुफल को।

अपने  हाथ   नयन की  क्षमता,
नहीं किसी से  दृग  की समता।

पूँछो  जिसके   नयन   नहीं   हैं,
उससे  क्या  दो नयन   सही  हैं।

 मूल्य  नहीं है  कोई   नयन  का,
प्रकृति -दत्त  इस   सत  वर का।

"शुभम"सदा कोई उऋण न होना,
देकर प्रभु  कोई  नयन  न खोना।

💐शुभमस्तु।

✍🏼©डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"

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