मंगलवार, 29 मई 2018

अभी और भरम रहने दे

अब तक  था  भरम में मन,
अभी और   भरम   रहने दे।
अंधियारों    में   जीता   था,
कुछ    अंधियारा  रहने दे।।1

दिन में    भी   हमारी  आँखें ,
कुछ  देख    न     पाती   हैं  ।
अंधियारा        सुकूँ      देता ,
यहाँ     अँधियारा  भरने दे।।2

पीछे   -    पीछे        चलना
मेरी  आदत   में  शामिल है।
मेरी    पीछे     चलने    की ,
आदत    तो     रहने    दे।।3

कोई   बरगद     की    छाया ,
निर्भीक        बनाती       है।
किसी   सघन   शजर   नीचे,
कुछ   पल  तो   बसने     दे।।4

हम    उड़ते        पंक्षी     हैं  ,
निर्भर    उन      पर    रहना।
उनके   कण      दानों     पर,
कुछ  दिन   और    चरने  दे।।5

'गर    होती       इतनी    भी,
भेजे   में    अक्ल     अपनी ।
उनकी       'सद्बुद्धि'       से ,
जीवन    तो     चलने     दे।।6

जीवन   भर          भेड़    रहे ,
भेड़ों     में        रहे       जिये ।
"शुभं"   शेर        बनें      कैसे ,
हमें     भेड़     ही     रहने   दे।।7

शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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