अब तक था भरम में मन,
अभी और भरम रहने दे।
अंधियारों में जीता था,
कुछ अंधियारा रहने दे।।1
दिन में भी हमारी आँखें ,
कुछ देख न पाती हैं ।
अंधियारा सुकूँ देता ,
यहाँ अँधियारा भरने दे।।2
पीछे - पीछे चलना
मेरी आदत में शामिल है।
मेरी पीछे चलने की ,
आदत तो रहने दे।।3
कोई बरगद की छाया ,
निर्भीक बनाती है।
किसी सघन शजर नीचे,
कुछ पल तो बसने दे।।4
हम उड़ते पंक्षी हैं ,
निर्भर उन पर रहना।
उनके कण दानों पर,
कुछ दिन और चरने दे।।5
'गर होती इतनी भी,
भेजे में अक्ल अपनी ।
उनकी 'सद्बुद्धि' से ,
जीवन तो चलने दे।।6
जीवन भर भेड़ रहे ,
भेड़ों में रहे जिये ।
"शुभं" शेर बनें कैसे ,
हमें भेड़ ही रहने दे।।7
शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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