इतनी भी न तानो अधिक
डोरी टूट जाएगी,
मत लो परीक्षा सब्र की
हद रूठ जाएगी।
कीमत नहीं तेरी नज़र में
कोई आदमी की भी
ईंट - पत्थर की ये
मंज़िल छूट जाएगी।
अपने अहं में आदमी को
आदमी तो मान
तेरे अहं की झूठी
कहानी टूट जाएगी।
सभ्य शिष्टाचार तो
सबसे अपेक्षित है
इंसान पशु में भेद
क्या मूरत बताएगी?
कुछ न लाया ले जाएगा कुछ
सब धरा का है,
ये हस्ती जो कमाई है
धरा पर छूट जाएगी।
चार दिन की चाँदनी है
फिर अँधेरा है
रौशन आज की पूनम
न ऐसे दम दमायेगी।
न इतरा तू न इठला तू
ये दुनिया एक मेला है ,
"शुभम" किस मोड़ पर
फिर भेंट अपनी हो ही जाएगी।
चाँदी की चम्मच मुंह में ले के
सब आते न दुनिया में
कर्म बिन चम्मच न मुँह में
कुछ खिलाएगी।
इस कूप की मुंडेर पर
जो स्वर निकालोगे,
वही ध्वनि लौटकर
तुम्हारे पास आएगी।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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