सबसे अच्छा मौन भला है,
ये भी मित्रो एक कला है।
बुरे किसी के नहीं बनोगे ,
सिर भी अपना नहीं धुनोगे।
चुपचुप मज़े उड़ाओगे तुम,
छुपछुप गुल भी खिलाओगे तुम।
तुम्हें कहेगा श्रेष्ठ ज़माना,
बैठे - ठाले नाम कमाना।
हर्रा लगे न फिटकरी लगनी,
यश की क़ीमत पूरी मिलनी।
कोई ' लब्धि न हो तो क्या है,
बिन ख़र्चे मिल जाए तो क्या है!
सबसे बढ़िया गुपचुप जीना,
बारहों महीने चौड़ा सीना।
पड़े जोर सटके कौने में,
खाई बूंदी छिप दौने में।
घनी छाँह के बसने वाले,
मौके पर छिप रहने वाले।
चुप रहने के साठ बहाने,
सबके अच्छे सबहिं सुहाने।
सदा दूर रहें जिम्मेदारी,
परदे में पीटहिं कर -तारी।
कान भरें कौने ले जाकर,
दूर रहें जब भेद उजागर।
ताव मूँछ दे बड़े सिहाते,
अपनी पीठ आप थपथपाते।
मौन इनकी तलवार और खंजर,
उर्वर को भी कर दें बंजर।
इनसे "शुभम" बचते नित रहना,
बिगड़े बात तो फिर मत कहना।
💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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