अभी तो वक़्त है बहुत
इतनी बेक़रारी क्यूँ है
आयेंगी आँधियाँ भी कई
तूफ़ान की इन्तज़ारी क्यूँ है!
अभी तो महज़ एक सन्नाटा है
हवा बन्द - बंद - सी है
संभालो अपने जिस्म के कपड़े
ये हवाओं पे सवारी क्यूँ है!
अपने तम्बुओंकी रस्सियां कस लो
कमर भी कसकर रहना
तूफान भी आएगा
कीचड़ में ईंट मारी क्यूँ है!
खिड़कियां दरवाज़े भी अपने
बन्द रखने होंगे
मगर हर दर पे लटकती
परदेदारी क्यूँ है!
छोटे - छोटे ये दरख़्त
बगूलों में उड़ ही जाने हैं
मगर बड़े पेड़ों की
अभी से ख़्वारी क्यूँ है!
ये झूमती लताएं तो
लिपट ही जाएँगीं मजबूत तने से
उलझती हुई झाड़ियों की
यूँ तरफ़दारी क्यूँ है!
आई भी नहीं है अभी तो
बरसात "शुभम" खेत जंगल में
कूदने लगे हैं मेढक
जुगनुओं की चमकदारी क्यूँ है!!
शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें