रविवार, 27 मई 2018

दुनिया एक बाज़ार है-2

ये   दुनिया   एक   बाज़ार   है ,
बस  पैसे  की    दरकार     है।

कुछ भी खरीदना  सरल बड़ा,
सबके दिमाग में  स्वर्ण   चढ़ा।

सोना ही  जीवन   मानव  का,
पहचान  नहीं  है  दानव   का।

यहाँ    बिकती  भी   सरकार है,
नित  वोटर    से   खिलवार   है।
ये दुनिया ....

सौ करोड़   में   बिके   विधायक,
आम आदमी  क्या किस लायक।

दो    कौड़ी      का     इंसान    है,
बस    नेता     यहाँ       महान है।

लगता       गुंडा        दरबार    है,
इंसां   का   इंसां      आहार     है।
ये दुनिया ....

नैतिकता    का      मोल     नहीं ,
नंगेपन  पर   कोई   खोल   नहीं।

मानवता  कराह रही    दिन -दिन,
जी रही  ज़िंदगी  दिन गिन- गिन।

आदमी     बना      हथियार    है,
शोषण   का   खुला   दुआर   है।
ये दुनिया ....

शिक्षा   की    खुली     दुकानें   हैं,
जहाँ  नियम - मूल्य   मनमाने हैं।

मज़बूरी  का   फ़ायदा  उठा   रहे,
सम्बन्धों   को   यूँ ही   भुना  रहे।

ज़िंदगी    छात्र    की   ख़्वार   है,
पढ़ना-लिखना    भी    भार    है।
ये दुनिया ....

सबसे     सस्ता      इंसान     है ,
सस्ती  उससे    भी   जान     है।

बस  जय   जवान   का नारा   है,
सारा     किसान      बेचारा    है।

अन्यायों   की       भरमार      है,
सब   जगह  गूढ़    भृष्टाचार   है।
ये दुनिया....

जबरदस्त     की      लाठी     है,
हेकड़ी    दुष्टता        हावी     है।

बाबाओं  की अज़ब    कहानी है,
जब उठी  पूँछ   तब    जानी  है।

सुरा- सुंदरी   का      सागर    है,
बाबा    उनका   नटनागर      है।

बस   पैसा   पैसा      पैसा     है,
कोई क्या जाने   वह   कैसा   है?

कलयुग का "शुभम" चमत्कार है,
विलासिता - तृप्त      संसार   है।

ये दुनिया     एक     बाज़ार   है,
बस   पैसे   की     सरकार    है।

💐शुभमस्तु!
"©✍🏼 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...