रविवार, 27 मई 2018

दुनिया एक बाज़ार है

ये  दुनिया  एक  बाज़ार   है,
हर  खरीदार   लाचार      है।

शिक्षा    बिकती   है नोटों से,
लोकतंत्र    भी    वोटों     से।

शिक्षक का मूल्य नहीं  कोई,
उसकी  तो किस्मत ही  सोई।

छात्रों    का   शुल्क  उधार है,
कैसे     होगा      उद्धार    है?
ये दुनिया.......

शिक्षक - भविष्य का ज्ञान नहीं,
कल  क्या होगा   ये भान   नहीं।

दो रोटी  की   खातिर   पिसता,
नित चॉक बोर्ड पर भी  घिसता।

फिर  भी   संशय   की   रार है,
कैसी   विचित्र      तक़रार   है।
ये दुनिया....

निजीकरण   की    निजता  में,
श्रम का शोषण  स्वयंप्रभुता में।

खाली    हो   तो   गड्ढे    खोदो,
बैनर बांधों   या   गो , गो,   गो।

कुछ  भी करने   को  लाचार है,
क्या  यही  प्रगति  का द्वार   है?
ये दुनिया ....

कोई  बना   रसोइया    बैठा है,
वेतन  शिक्षक    का  लेता   है।

सारा  दिन सेंके   रोटियाँ गरम,
मालिक  को थोड़ी नहीं शरम।

ये कैसा   कोई   सलाहकार  है ,
जीना शिक्षक   का    दुश्वार  है।
ये  दुनिया....

शिक्षक -आसन का मोल नहीं,
सम्मान नहीं     सहयोग  नहीं।

बस अहंकार  का    डंका   है,
तो  कब तक  जिंदा लंका  है?

क्या यही  गौरव    का द्वार  है !
जहां   खुली    शर्म-सलवार है?
ये दुनिया....

शिक्षा  का पतन   हुआ तब से,
बनिए के  हाथ   बिकी जब से।

बस नोट   छापने   का   धन्धा,
हो गया   आदमी   ये    अन्धा।

खुल  गया  भाड़   का  द्वार  है,
शिक्षा ,शिक्षक    की  हार    है।
ये दुनिया ....

सब कुछ बस   नोट  कमाना है,
कह रहा  रोज़ ये    जमाना   है।

सोए   सब   माता - पिता   पुत्र,
दुश्मन    को   माने   हुए  मित्र।

ये   युग   की    कैसी  मार    है,
जन -जन   जनता   बीमार   है!
ये दुनिया .....

हर जगह सियासत  का  तड़का,
बिगड़े लड़की या बिगड़े लड़का।

चौपट     राजा     अंधेर    नगर,
बस नोटों    वाला    जगर-मगर।

ये कैसा   "शुभम"   खुमार    है!
धन्धेखोरों   का      धमार     है।
ये   दुनिया   एक    बाजार    है,
हर   खरीदार        लाचार   है।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"


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