आँकड़ों से भर रहे
अखबार टीवी सब,
आँकड़ों के झाँकड़ों से
सरकार नहीं चलती।1
झाँकड़ों के शूल ने
उलझाया ही सदा,
हर शूल की डाली पे
कलिका फूल की खिलती?2
करने में श्रम निज हाथ से
पड़ती कड़ी मेहनत ,
जीभ की लफ्फाजियों से
कोई बात नहीं बनती।3
आँकड़े सच हों अगर
खुश होने के लिए,
झूठे आँकड़ों से,
देश की तस्वीर नहीं बनती!4
उँगली करोगे कल में तुम
ये कलयुग की चाल है,
कोई बात ऐसी हो न
तो अँगुली नहीं उठती।5
करके जुगाड़ें काम कब तक
कर सका कोई ,
ऐसी तेरी फ़ितरत से
किस्मत देश की बनती?6
मौसेरे भाई चोर हों
तो दोष किसको दें,
जब होगी मिलीभगत मित्रो
शक - रार नहीं बनती।7
बिन आग के धुआँ कभी,
उठता नहीं देखा।
भाषणों के अंधडों से,
कोई आग नहीं बुझती ।8
आदर्श की बातें बनाना
बहुत ही आसान,
आदर्श के मीठे बताशों
नहि मधुरिमा बनती।9
इतनी भी मूरख नहीं है,
देश की जनता।
आश्वासनों वादों से
"शुभम" खुशियां नहीं मिलतीं।
💐शुभमस्तु!
©डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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