कान मूँद बहरे बन जाओ,
नयन खोल और जीभ चलाओ।
कितना अच्छा बहरे रहना,
ऐच्छिक सुनना कुछ भी कहना।
सारा जायजा चक्षु से लेना,
पड़े ज़रूरत मुँह से देना।
बहरा रहना बड़े काम का,
सीमित सुनना बिना दाम का ।
गाली मिले तो क्यों चुप रहना,
दे प्रतिउत्तर कुछ भी कहना।
बस मतलब की ही बातें सुनना,
अपना कम्बल खुद ही बुनना।
ध्यान रखो गांधी के बंदर,
जोर पड़े घुस जाओ अंदर।
कुछ भी कह लो कुछ भी देखो,
पर कानों से बुरा न देखो।
बन मूरख नित चरो मिठाई,
बहरेपन की लगा दुहाई।
कौन देखता बहरे भी हो,
सब समझेंगे बहरे ही हो।
अभिनय की महिमा है न्यारी,
नर भी बन जाते हैं नारी।
"शुभम" कान का काम निराला,
खुला हो या बंद परदा -ताला।
💐शुभमस्तु!
✍🏼©डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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