गुरुवार, 7 जून 2018

डायवर्जन:एक कला

    हम सभी ने 64 कलाओं के बारे  में  सुना भी है, पढ़ा भी है। लेकिन एक 65 वीं कला की खोज भी हो चुकी है, जिसके विषय में अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं। ये कला  आज के युग की देन है।आज के युग का नवीन नामकरण मैं पहले ही अपने एक लेख में स्प्ष्ट रूप से  कर ही  चुका हूँ। लेख का शीर्षक है :"त्रेतायुग  से नेता  युग तक"। तो अब आप समझ ही गए होंगे कि ये "नेतायुग "है।
   हाँ, तो मैं एक नई कला की नई खोज की चर्चा कर रहा था। वह नई कला है:"डायवर्जन कला"।इस कला की खोज का श्रेय जाता है वर्तमान नेता युग के सम्माननीय नेताओं को, जिनके बुद्धिचातुर्य से इस कला का प्रसव हुआ।अभी तक ये कला अपनी शैशवावस्था में किलोलें कर रही थी। और   भारत    के हरे - भरे , विभिन्न सियासी रंगों से सजे-संवरे , कहीं     नीले  -  लाल ,    कबरे, सुनहरे अँगने में रूप में    घुटरन-  घुटरन  खेल रही थी । आज वही  डायवर्जन कला अपने पूर्ण  यौवन पर  सिर चढ़कर बोल रही है। नगर -नगर , गाँव -गाँव ,गली -गली डोल   रही   है।  इस कला को हिंदी में " ध्यान-विच्युत कला " की संज्ञा से अभिहित  किया जाता है।   
  "ध्यान-विच्युत कला " अथवा  "डायवर्जन कला" का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि जिस धारा में  प्रवाह चल रहा है ,उसके मुख्य मार्ग में ऐसा सुंदर और सम्मोहक व्यवधान उत्पन्न कर दिया जाए कि मार्ग में चलने वाला पथिक  अपना मार्ग  भटका हुआ भी महसूस न करे और पथच्युत   भी  हो जाए। उसका  अपना मार्ग    भुलाकर  अपने मनचाहे मार्ग पर मोड़ देना ही इस कला की सफलता का ध्येय है।
   अब  प्रश्न यह  पैदा होता  है कि इस कला का लक्ष्य क्या है? लक्ष्य है उल्लू बनाकर  शासन करना औऱ  शोषण करते  हुए भी ये अहसास न होने देना कि तुम्हें चूसा जा रहा है। चुपचाप अपना ध्यान उधर  लगाए रहो , जिधर वे  चाहते हैं। अंतिम लक्ष्य अर्जुन  कज़ चिड़िया की आँख। अर्थात  वह अक्ष , या  धुरी , जिस पर शासन के रथ के चक्के घूम रहे हैं। केवल और केवल सर्वोच्च सिंहासन की प्राप्ति। यही डायवर्जन कला ( ध्यान- विच्युत कला) का परम धर्म है।जब चोरी को 64 कलाओं में  शामिल किया जा सकता है , तो इसे तो और भी उच्च स्थान दिया जाना चाहिए। ये नेतायुग की 65वीं नवीनतम कला है।
    इस  कला की गहराइयों में जाएँ, तो बड़े-बड़े हीरे प्राप्त होंगे (मोती नहीं ), क्योंकि हीरा कोयले की  खानों  में उच्च तापमान पर कोयले के तपनोपरांत ही प्राप्त होता है, वही सिद्धांत  राजनीति की खदान के लिए भी लागू होता है।क्योंकियहाँ बड़े -बड़े जपी-तपी  निरन्तर तपश्चर्या से डायवर्जन कला के प्रयोग करते रहते हैं और वे इसमें
सफ़ल भी हो रहे हैं।
   इस प्रकार एक नई आधुनिक कला -"डायवर्जन कला(ध्यान -विच्युत कला) की खोज का पहला अध्याय समाप्त होता है।

💐शुभमस्तु!

✍🏼 ©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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