आप सभी चोरियों से परिचित हैं। चोरियाँ बहुत प्रकार की होती हैं।पैसों की चोरी, घर मकानों से आभूषण और अन्य सामानों की चोरी, ककड़ी चोरी, दिल की चोरी, दुकान से चोरी, चैन की चोरी आदि आदि। लेकिन एक और बड़ी चोरी और भी होती है जिसे साहित्यिक चोरी कहते हैं। चोर के लिए भले ही इस चोरी का विशेष महत्व न हो, लेकिन जिस आदमी के साहित्य की चोरी हो जाती है , उसके लिए इसका बड़ा महत्व है।
ह्वाट्सएप्प पर बहुत से चोर व्यक्ति दूसरों के लिखे हुए लेखों, कविताओं और अन्य महत्वपूर्ण सामग्री को और कविताओं को चुराकर अपना नाम लिखकर वाहवाही लूटना चाह रहे हैं । ये सब कुछ मैं कपोल -कल्पित नहीं लिख रहा हूँ।आज मेरे साथ भी ऐसा ही हादसा हो गया , तो मुझे बिना लिखे चैन नहीं आया। एक उच्च शिक्षित व्यक्ति ने मेरा ही एक लेख , जो मैंने विश्व पर्यावरण दिवस पर 5 जून 2018 को लिखा था, उसे ज्यों का त्यों अपने नाम से उस व्यक्ति के पास सेंड कर दिया ,जो मेरा ही मित्र था। मित्र भी चिंतित हुए और उन्होंने ।मुझे पूछा कि क्या आप इस नाम से भी लिखते हैं। और मज़े की बात तो ये रही कि महोदय ने मेरा उपनाम भी चुराया।चोरी तो पकड़ में आनी ही थी, सो आई। पर उन महोदय की देखिए बेशरमी कि ये नहीं देखा कि मेरे उस लेख में मेरा ब्लॉग एड्रेस भी लिखा हुआ है।जिस पर कोई भी ये जान सकता है कि इसका मूल लेखक कौन है। उस ब्लॉग एड्रेस सहित नाम व उपनाम बदलकर पूरा लेख चुराकर अपने मित्रों आदि कोभेज दिया। मैने जब इसके बारे में पूछा तो वे कोई उत्तर नहीं दे सके। बाद में मैने ही बिना पुलिस आदि की मदद के अपने ही व्हाट्सएप्प लिस्ट में उस चोर को पकड़ा। और तुरंत एक चेतावनी पूर्ण संन्देश फेंक दिया। अब 'चोर'महोदय अपना नेट बंद किए बैठे हैं , जब खोलें तो संन्देश देखें।
आप कृपया चोर का नाम मत पूछिए , क्योंकि समझदार के लिए इशारा बहुत होता है। आप कोई भी मित्र कभी ऐसा मत कीजिए कि किसी के मूल लेख , कविता आदि को अपने नाम से सेंड /फारवर्ड मत कीजिए, अन्यथा कभी कानूनी पचड़े में पड़ गए तो कि चोरी और धारा 420 में दण्डनीय अपराध के भागी भी होना पड़ सकता है।
💐शुभमस्तु!
✍🏼©डॉ. भगवत स्वरूप
ह्वाट्सएप्प पर बहुत से चोर व्यक्ति दूसरों के लिखे हुए लेखों, कविताओं और अन्य महत्वपूर्ण सामग्री को और कविताओं को चुराकर अपना नाम लिखकर वाहवाही लूटना चाह रहे हैं । ये सब कुछ मैं कपोल -कल्पित नहीं लिख रहा हूँ।आज मेरे साथ भी ऐसा ही हादसा हो गया , तो मुझे बिना लिखे चैन नहीं आया। एक उच्च शिक्षित व्यक्ति ने मेरा ही एक लेख , जो मैंने विश्व पर्यावरण दिवस पर 5 जून 2018 को लिखा था, उसे ज्यों का त्यों अपने नाम से उस व्यक्ति के पास सेंड कर दिया ,जो मेरा ही मित्र था। मित्र भी चिंतित हुए और उन्होंने ।मुझे पूछा कि क्या आप इस नाम से भी लिखते हैं। और मज़े की बात तो ये रही कि महोदय ने मेरा उपनाम भी चुराया।चोरी तो पकड़ में आनी ही थी, सो आई। पर उन महोदय की देखिए बेशरमी कि ये नहीं देखा कि मेरे उस लेख में मेरा ब्लॉग एड्रेस भी लिखा हुआ है।जिस पर कोई भी ये जान सकता है कि इसका मूल लेखक कौन है। उस ब्लॉग एड्रेस सहित नाम व उपनाम बदलकर पूरा लेख चुराकर अपने मित्रों आदि कोभेज दिया। मैने जब इसके बारे में पूछा तो वे कोई उत्तर नहीं दे सके। बाद में मैने ही बिना पुलिस आदि की मदद के अपने ही व्हाट्सएप्प लिस्ट में उस चोर को पकड़ा। और तुरंत एक चेतावनी पूर्ण संन्देश फेंक दिया। अब 'चोर'महोदय अपना नेट बंद किए बैठे हैं , जब खोलें तो संन्देश देखें।
आप कृपया चोर का नाम मत पूछिए , क्योंकि समझदार के लिए इशारा बहुत होता है। आप कोई भी मित्र कभी ऐसा मत कीजिए कि किसी के मूल लेख , कविता आदि को अपने नाम से सेंड /फारवर्ड मत कीजिए, अन्यथा कभी कानूनी पचड़े में पड़ गए तो कि चोरी और धारा 420 में दण्डनीय अपराध के भागी भी होना पड़ सकता है।
💐शुभमस्तु!
✍🏼©डॉ. भगवत स्वरूप
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