प्रत्येक व्यक्ति में महत्वाकांक्षा का गुण कम या अधिक मात्रा में पाया जाता है।जब इसकी मात्रा अपनी चरम सीमा को पार कर जाती है , तो उसे अति महत्वाकांक्षी कहा जाता है।यही महत्वाकांक्षा जब बहुत अधिक बढ़ जाती है ,तो उसे सीमोलंघित प्रदर्शन (ओवर शो ) कहा जाता है।मानव की यह एक प्रवृत्ति है। इस प्रवृत्ति के कुछ उदाहरणों से इसे स्प्ष्ट किया जाएगा। जो हम नहीं हैं उससे अधिक औऱ अधिकतम दिखाने का प्रयास करना ही 'ओवर शो ' है।जैसे किसी के घर में लड़के वाले लड़की देखने आ रहे हैं औऱ वह घर में सोफा, क्रॉकरी आदि न होने के बावजूद पड़ौसी से माँगकर अपना काम निपटाता है तो यह 'ओवर शो' है। कुछ लोग किसी सभा सोसायटी में नेताओं और अधिकारियों से चिपकने का प्रयास करके अपने अन्य मिलने वालों को यह जताने का प्रयास करते हैं कि वे उनके बहुत करीब हैं।अर्थात अपने को भी उनकी कतार में खड़ा दिखाने का सफल या असफल प्रयास करते हैं। गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर बड़ा सा तिलक, चंदन आदि लगाना, बढ़ चढ़कर अपनी शेखी बघारना, किसी बड़े अधिकारी या नेता से अपने नजदीकी सम्बन्ध बताना, आदि ऐसे अनेक उदाहरण हैं ,जो सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, प्रशासनिक स्तर पर आए दिन देखे सुने जाते हैं।
आखिर आदमी अपनी सीमा में क्यों नहीं रहना चाहता! अपनी औकात से बढ़कर मूँछे मरोड़ना उसके स्वभाव का एक हिस्सा ही बन गया है।अनावश्यक मूँछों पर ताव देने का आखिर क्या मतलब है। जो सम्बंधित व्यक्ति की आंतरिक औकात से परिचित होते हैं ,वे उनकी हँसी का पात्र भी बनते देखे जाते हैं।
यद्यपि यह मानव का मनोविज्ञान है किंतु सभी लोग ऐसा करते हों , ऐसा भी नहीं है। आदमी को अपनी चादर के भीतर ही रहना चाहिए , परन्तु अपनी 'ओवर शो' या 'सीमोलंघित प्रदर्शन' की छवि बनाकर शायद उसे आत्म तुष्टि मिलती है।ध्यान रखें कि सामान्य जीवन जीकर आप महान हो सकते हैं ,किन्तु असामान्य या महानता का मुखौटा लगाकर नाटक तो कर सकते हैं , परन्तु महान नहीं बन सकते।स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस , राष्ट्रपिता महात्मा गांधी , राष्ट्र की बलिवेदी पर अपने परिवारों औऱ प्राणों की आहुति देने वाले कितने अनाम औऱ सुनाम अमर शहीद -क्या इन्होंने कभी ओवर शो किया? ये महान बने अपने कर्म से , न कि दिखावटी प्रदर्शन से। खुरदरे चेहरों को ही क्रीम, पाउडर आदि कृत्रिम साधनों से सजाकर ओवर शो किया जाता है। देश या विदेश के महापुरुषों ने ऐसा कोई ढोंग नहीं किया होगा। ओवर शो की प्रवृत्ति आज के कलयुग या कहें नेतायुग में कुछ अधिक ही चरम पर है। जब अपना ओज, तेज , शक्ति सब निचुड़ चुका है, तो आदमी बनावटी साधनों से लीपा पोती करते हुए अपना शो कर रहा है।
अपने कर्मों और योग्यता का सहारा लीजिए , ये दिखावटी नकली और नकल करके मिली डिग्रियों से कुछ हासिल नहीं होगा। अपने संस्कार , चरित्र , स्वाभिमान के बल पर आप क्या कुछ नहीं कर सकते? इसलिए नक़ली को छोड़ो, और असली से नाता जोड़ो।"ओवर शो" की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
💐शुभमस्तु!
✍🏼 ©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम
आखिर आदमी अपनी सीमा में क्यों नहीं रहना चाहता! अपनी औकात से बढ़कर मूँछे मरोड़ना उसके स्वभाव का एक हिस्सा ही बन गया है।अनावश्यक मूँछों पर ताव देने का आखिर क्या मतलब है। जो सम्बंधित व्यक्ति की आंतरिक औकात से परिचित होते हैं ,वे उनकी हँसी का पात्र भी बनते देखे जाते हैं।
यद्यपि यह मानव का मनोविज्ञान है किंतु सभी लोग ऐसा करते हों , ऐसा भी नहीं है। आदमी को अपनी चादर के भीतर ही रहना चाहिए , परन्तु अपनी 'ओवर शो' या 'सीमोलंघित प्रदर्शन' की छवि बनाकर शायद उसे आत्म तुष्टि मिलती है।ध्यान रखें कि सामान्य जीवन जीकर आप महान हो सकते हैं ,किन्तु असामान्य या महानता का मुखौटा लगाकर नाटक तो कर सकते हैं , परन्तु महान नहीं बन सकते।स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस , राष्ट्रपिता महात्मा गांधी , राष्ट्र की बलिवेदी पर अपने परिवारों औऱ प्राणों की आहुति देने वाले कितने अनाम औऱ सुनाम अमर शहीद -क्या इन्होंने कभी ओवर शो किया? ये महान बने अपने कर्म से , न कि दिखावटी प्रदर्शन से। खुरदरे चेहरों को ही क्रीम, पाउडर आदि कृत्रिम साधनों से सजाकर ओवर शो किया जाता है। देश या विदेश के महापुरुषों ने ऐसा कोई ढोंग नहीं किया होगा। ओवर शो की प्रवृत्ति आज के कलयुग या कहें नेतायुग में कुछ अधिक ही चरम पर है। जब अपना ओज, तेज , शक्ति सब निचुड़ चुका है, तो आदमी बनावटी साधनों से लीपा पोती करते हुए अपना शो कर रहा है।
अपने कर्मों और योग्यता का सहारा लीजिए , ये दिखावटी नकली और नकल करके मिली डिग्रियों से कुछ हासिल नहीं होगा। अपने संस्कार , चरित्र , स्वाभिमान के बल पर आप क्या कुछ नहीं कर सकते? इसलिए नक़ली को छोड़ो, और असली से नाता जोड़ो।"ओवर शो" की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
💐शुभमस्तु!
✍🏼 ©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम
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