शुक्रवार, 22 जून 2018

सियासी साजिश

एक आदमी अपने कन्धे पर एक बकरे को लिए हुए बेचने के लिए हाट में जा रहा था। रास्ते में उसे एक व्यक्ति मिला और बोला- 'अरे भाई इस कुत्ते के बच्चे को कन्धे पर लिए हुए कहाँ जा रहे हो?' इतना सुनकर वह चौंका और कहने लगा - नहीं भाई ! ये कुत्ते का बच्चा नहीं , बकरा है। इसे हाट में बेचने जा रहा हूँ।' तो रास्तागीर कहने लगा -'तुम्हें गलीफ़हमी हुई है, ये बकरे का बच्चा नहीं , कुत्ता ही है। नहीं मानते हो , तो ले जाओ। वरना यदि तुम चाहो तो इस पिल्ले के सौ रुपए यहीं खड़े- खड़े मुझसे ले लो। बाकी तुम्हारी मर्ज़ी! वह व्यक्ति उसकी बात पर विश्वास न कर आगे बढ़ गया।लगभग दो मील भर वह व्यक्ति चला होगा कि फिर एक आदमी मिला और उसी प्रकार उसने भी उसे कुत्ते का पिल्ला बताकर उसकी कीमत डेढ़ सौ रुपए लगाई।वहाँ भी उसने उस कन्धे पर रखे हुए पशु को नहीं बेचा और आगे बढ़ गया। लेकिन जब दो मील आगे जब तीसरे व्यक्ति ने उसे कुत्ते का पिल्ला बताकर दो सौ रुपए में खरीदना चाहा तो उस के मन में ये बात पैदा हुई कि हो न हो ये कुत्ते का पिल्ला ही हो। अभी तो इसके दो सौ रुपये लग रहे हैं । हाट में जाकर सौ भी न लगे ,तो ? और वास्तव में ये बकरा नहीं निकला, तो कोई पचास में भी नहीं खरीदेगा। इसलिए इसको यहीं दो सौ में ही बेच देना ठीक रहेगा।औऱ उसने कुछ सोच समझ कर उसे केवल दो सौ रुपए में दे दिया। जब वह घर वापस पहुँचा तो उसकी पत्नी औऱ पड़ौसियों ने कहा कि बकरे को इतनी जल्दी बेचकर कैसे आ गए।औऱ सिर्फ दो सौ रुपये में? तो वह अपनी बुद्धि पर तरस खाते हुए प्रायश्चित करने लगा। पता चला कि वे दो दो मील दूरी पर मिलने वाले ठग थे।उसे ठग लिया गया है। ये सब उन तीनों की साजिश कद तहत उसे ठग लिया गया है। लेकिन अब क्या हो सकता था?
यही पुरानी कहानी आज हमारे देश में दुहराई जा रही है। सत्ताधारी दलों द्वारा देश के। सभी बड़े चैनल खरीदे जा चुके हैं, वे उसी बात का प्रचार -प्रसार कर रहे हैं , जिससे सत्ता धारी दल की कोई कमी या दोष सामने न आ सकें। 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए , केवल वही बातें फैलाई जा रही हैं , जिनसे उनकी बाहरी चमक - दमक तो दिखती रहे औऱ वास्तविकता दिखाई न पड़े।लेकिन ये पब्लिक है , सब जानती है। किसी किसी को इतना अधिक हाई लाइट किया जा रहा है कि उसे भगवान से भी ऊपर के दर्जे में प्रतिष्ठित किया जा रहा है और दूसरी ओर किसी को निरा बुद्धू और मूढ़ करार दिया जा रहा है। उसकी एक छोटी अभिव्यक्ति को तिल का ताड बनाकर पेश किया जा रहा है। हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम वो क़त्ल भी करते हैं तो शिकवा नहीं होता। ये सियासी साजिशें पूरी पूर्व नियोजित योजना के तहत की जा रहीं हैं अगर ये नहीं तो कोई नहीं।ये बाप, ये ही इनकी माई,यही इनके भगवान से भी ऊपर अगर कोई है , तो वह। सोशल मीडिया पर ऐसे -ऐसे भड़काऊ वीडियो, ऑडियो, संन्देश , इमेज डाले जा रहे हैं कि जहाँ आग न लगें, वहाँ भी भयंकर अग्निकांड हो जाए।
किसी के बिना न समय रुकता है और नहीं किसी के बिना कभी देश , समाज और व्यक्ति का काम रुकता है।अब तक देश में अनेक सत्ताधारी आए औऱ काल के गाल में समा गए। क्या ऐसा कभी हुआ कि देश रुक गया हो। इस देश में तो क्या इस पृथ्वी कोई ये दावा नहीं कर सका और न कर सकेगा कि वही सर्वश्रेष्ठ है!आदमी का अहंकार और कुर्सी से चिपकने की हवस के तहत एक खतरनाक सियासी साजिश का जाल फैलाया जा रहा है। आदमी तो वो जीव है कि पल भर की खबर नहीं और तैयारी युगों की करता है। यदि सत्ताधारियों में ये बात हो तो कोई आश्चर्य भी नहीं है।पकड़ी हुई सत्ता की हैंडल कौन छोड़ना चाहता है! औऱ जब सरकारी पैसे के बल पर पर मीडिया , अखबार, टीवी चेनल ,को खरीद लिया जाए तो फिर भविष्य की भी मानो उन्ही के हाथ का खिलौना हो। इतने भड़काऊ वीडियो देखने को मिल रहे हैं कि बुद्धि का सारा माल बाहर ही आ जाए! यही ब्रेन वाशिंग है। झूठे आँकड़े, लच्छेदार भाषा शैली, डायवर्जन की कला, आदि ऐसे अनेक लोक लुभावन फार्मूले हैं , कि आम आदमी बहक ही जाता है।
सावधान! सावधान!!सावधान!!! बकरी के बच्चे को कुत्ते का पिल्ला बनाए जाने की पूरी -पूरी तैयारी है। पूरे जोर -शोर और नारों की गड़गड़ाहट के साथ देश को पुनः ठगने की योजना के अंतर्गत आग में घी छोड़ा जा रहा है।अपने गले में झाँकने की कोई भी जरूरत नही समझी जा रही।सर्वज्ञ, सर्वेश्वर मान कर पेश किया जा रहा है। वह घड़ी आने वाली है जब 60 की सेवा निवर्त्ति आयु 62 या 65 घोषित की जाएगी औऱ अधिक्कारियों और कर्मचारियों को ठगते हुए उनके सामने बाजरे के दाने बिखेरे जाएंगे। तमाम सबसीडीज बढ़ेंगी, लोक लुभावन योजनाएं शुरू की जाएंगी। क्योंकि पढ़े लिखे वोट डलवाते हैं औऱ बिना पढ़े लोगों के वोट से लोकतंत्र का ऊँचा सिंहासन निर्मित होता है। इसलिए संभलना होगा, अन्यथा पिसने के लिए तैयार रहिए। किसी दल के दलदल से बाहर खड़े होकर जो बात कही गई है, उस पर चिन्तन , मनन और मंथन बहुत जरूरी है, अन्यथा आपकी जैसी मर्जी। फिर पछताए होत कहा, जब चिड़ियां चुग जाएँ खेत।

शुभमस्तु!
लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
22.06.2018 ● 8.45 PM






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...