रोज़ करें तो योग है,
वरना बस संयोग।
क्या होता एक दिवस में,
देखा - देखी लोग।।
ना होली त्यौहार ये,
नहीं दिवाली - दीप।
रोज़ मनाना नियम से,
तब तन - मन उद्दीप्त।।
भोजन पानी की तरह ,
नित्य चाहिए योग ।
सांस - सांस गति योगरत,
तब हो देह निरोग।।
फोटू भी खिंचवा लिए,
छप भी गए अखबार।
वर्ष - वर्ष फिर आएगा,
इक्कीस जून हर बार।।
बाईस जून को क्यों करें,
फ़ोटो नहीं अखबार।
आज टी वी पर आयेगा,
योग -दिवस सौ बार।।
योग नाम है जोड़ का ,
करें नियम से नित्य।
देश भी अपना योग है,
यही बात है सत्य।।
जाति - धर्म में टूटकर ,
किया अगर तुम योग।
ढकोसला बन जाएगा,
टूट -फूट का रोग।।
सिर्फ दिखावे के लिए ,
करो न प्राणायाम ।
प्राणों के आयाम में,
बस साँसों पर ध्यान।।
कपालभाति या भस्त्रिका,
या अनुलोम - विलोम।
श्वांस -नियम के योग हैं,
हर्षित हो हर रोम।।
जीवन के हर क्षेत्र में,
योग जरूरी तत्त्व।
'गर मज़हब लड़ते रहे,
मिटे एकता - सत्व।।
छोट- बड़ाई की कथा ,
फिर कैसे हो योग!
मन में जब कीड़े घुसे,
जल से अनल विरोध।।
अपने - अपने रोग हैं,
अपने - अपने योग।
मानवता से जो जुड़ा,
नित्य करेगा योग।।
आयु बढ़े निरोग तन,
मन में जोश अपार।
योग धर्म मज़हब बिना ,
करता सबका उद्धार।।
शुभम योग की गहनता,
आदि काल संस्कार।
जुड़ जाएँ तन -मन सकल,
जाएँ विनश विकार।।
💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता©*डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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