मंगलवार, 5 जून 2018

ऐसी क्या मजबूरी है!

            आज जागरूकता का युग है और  हम    जरूरत   से  ज़्यादा जागरूक भी हो गए हैं। फिर भी ऐसी कौन सी मजबूरियाँ हैं कि हम जो चाहते हैं , वह कर नहीं पा रहे। वर्षों से हल्ला मचा हुआ है कि पॉलीथिन बन्द करो, पॉलीथिन बन्द करो, प्लास्टिक के बर्तनों में  खाद्य पदार्थ रखना और उस खाद्य पदार्थ को खाना या पेय पदार्थ को पीना अत्यंत  घातक है। ये सभी चीजें हमारे पर्यावरण को भी प्रदूषित  कर रही हैं।इससे हमारे जल, थल, वायु , आकाश सभी कुछ दुष्प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन इतना सब जानने समझने के बावजूद हम हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं और सोच लिया है कि ये कोई औऱ ही कर  जाएगा। किन्तु ये हमारी सबसे बडीं भूल है।

      जब पॉलिथीन को बंद करने की बात आती है तो  शासन और प्रशासन बेचारे दुकानदारों औऱ निरपराध ग्राहकों को कि चोर मानकर  उनके ऊपर शिकंजा कसने लगती है। जिन पूँजीपतियों औऱ कारखानेदारों के यहाँ इन वस्तुओं का उत्पादन होता है, उनसे कुछ  ही नहीं किया जाता। क्यों सरकार उनके ऊपर प्रतिबंध नहीं लगा पाती? चोरी करने के लिए स्वयं सरकार के द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है , तो पॉलीथिन का प्रयोग रुके कैसे?
 ऐसा होना कदापि सम्भव नहीं है। चोर  की  अम्मा को तो पकड़ते नहीं , इधर -उधर अँधेरे में  हाथ पाँव मार रहे हैं। असली चोर तभी पकड़ में  आएगा , जब चोर  की अम्मा को पकड़ा जाएगा। लेकिन  किसी अज्ञात प्रलोभन या  किसी बड़े आर्थिक या राजनीतिक लाभ के कारण पत्ते पत्ते पर दवा छिड़कते फिरते हैं। इससे कोई लाभ होने वाला नहीं है। कीड़ा मारने के लिए जड़ों में दवा डालनी होगी।

     माना कि पॉलीथिन या प्लास्टिक सामग्री विदेशों से भी आयातित होती होगी। यदि प्रतिबंध लगाना ही है तो उस पर भी प्रतिबंध लगाना हमारी वरीयता में होना चाहिए। न होगा बांस न बजेगी बाँसुरी।सब कुछ जान और समझ कर ग्राहकों औऱ आम जन को परेशान करना ये सिद्ध करता है कि शासन और प्रशासन की अपनी ही इच्छा शक्ति  की कमी है। पॉलीथिन और प्लास्टिक के विकल्प भी प्रस्तुत किए  जाएं। विकल्प हैं भी, उनका प्रचार प्रसार किया जाए, तो कोई बडीं समस्या नहीं है कि इन विषाक्त चीजों पर रोक न लग सके।किसी अज्ञात स्वार्थवश सरकारें मजबूत कदम उठाने को यदि मजबूर हैं तो समस्या सुरसा के मुँह की तरह यूँ ही मू बाए खड़ी रहेगी और जनता जनार्दन के साथ अन्याय तो होगा ही , उसका  शोषण भी प्रशासन  के द्वारा होता रहेगा।

      इसलिए हम सभी को भी जागरूक रहना है औऱ सारा दोष सरकार औऱ प्रशासन पर मढ़े बगैर अपनी भी जिम्मेदारी महसूस  करते हुए अपरिहार्य परिस्थिति में ही प्लास्टिक और पॉलीथिन का प्रयोग करना है, क्योंकि अपनी सेहत पर्यावरण को दुरुस्त करने में हमारी भी अहम भूमिका है, जिसे हमें गंभीरता पूर्वक समझना होगा।
जब हम शासन और प्रशासन सब मिलकर काम करेंगे तो कुछ असम्भव नहीं है:
 मन के हारे  हार है ,
मन के  जीते  जीत।
परब्रह्म  को पाइए,
मन ही की परतीति।

💐शुभमस्तु!
✍🏼©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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