रोकी  नहीं      चित्त की  वृत्ति
फिर  ये       कैसा      योग है !
नियमन  नहीं  श्वांस   का तेरा
फिर क्यों  ये    सब   योग है?
उठ - बैठक  औ' धमा- चौकड़ी
हाथ - पैर       फेंकना     उधर,
ये   तो सब  आसन हैं   तन के
योग   नहीं   तन की   कसरत।।
चित्तवृत्ति  से   जुड़ा हुआ  जो
साँसों      का     आना - जाना,
प्राणों का     आयाम   सुधारक
उसे   योग  समझा        जाना।
ऊपर    नीचे     देह     घुमाना
सिर   जमीन     ऊपर दो पाँव,
शीर्षासन   सुनते  थे    हम तो
चले   जाओ    नगर   या गांव।।
शीतकारी    भस्त्रिका    भ्रामरी
कपालभाति    के     प्राणायाम,
अनुलोम -विलोम भी देखे जाने
योग  के इनमें    बसते   प्राण।।
स्वेद   बहाना    योग     नहीं है
हाँ, आसन  हैं    तन के    सारे,
केवल तन   से जुड़े हुए    सब
किन्तु    योग  से   रहते न्यारे।।
भ्रमित  करो मत    राजनीति से
परिभाषा    बदलो  न योग   की,
इतने  मत     संकीर्ण   बनो जन
लगे चमक ज्यों चपल भोग -सी।
क्या   पतंजली      ने   बतलाया
योग    बराबर   आसन     होते?
फिर  तो नेता औऱ  संत     सब
एक   तराजू     तुलते       होते ?
नए जमाने के ए लोगो
नष्ट  न   करो   संस्कृति   अपनी,
शुभम  योग   से  जोड़ों निज को
राजनीति  की     त्यागो  नपनी।।
💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता©
 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
 
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