शुक्रवार, 1 जून 2018

एक चुगलखोर की आत्म स्वीकृति

मैं  एक चुगलखोर नारी हूँ। मोहल्ले वालों के वास्ते बड़ी बीमारी हूँ। मैं जिस किसी भी घर में घुस जाती हूँ। उस घर का नक्शा ही पलटवा देती हूँ। पड़ौसी की पड़ौसी से , बहू की सास से, किरायेदार की मकान मालिक से  नमक मिर्च लगाकर जो कान भरती हूँ, उस पर उन्हें सहज ही विश्वास हो जाता है। उसी दिन या अगले ही  दिन उसका रिजल्ट सामने आ जाता है।
  जब पड़ौसी पड़ौसी से, सास बहुएं  ,किरायेदार मकान मालिक से  लड़ते हैं , तो मुझे बड़ा मज़ा आता है। तब मैं अपने घर के दरवाजे बंद करके खिड़कियाँ खोल कर उसका आनन्द लेती हूँ ,तो उस आनन्द की तुलना किसी भी भौतिक आनन्द से नहीं की जा सकती।
       क्या करूँ मैं अपनी इस चुगलखोरी की  आदत से बड़ी मज़बूर हूँ , पर क्या करूँ आत्म तुष्टि के लिए करना पड़ता है। अगर किसी के  स्वर्ग जैसे घर को नरक बनाना हो, तो कोई मुझसे बात करे।आधे घंटे के अंदर घर का नक्शा ही तब्दील कर दूं , तो  अग्गो मेरा नाम नहीं। मेरे मां -बाप ने शायद मेरा नाम बड़ा ही सोच समझकर रखा होगा। अब जब अपना नाम ऊँचा कर रही हूं तो इसकी असलियत का आभास हो रहा है।
        वैसे मोहले में मुझे कोई पसंद नहीं करता , पर मैं हूँ कि दुबके छुपके घरों में घुस ही जाती हूँ।  मैने सुना है कि पीठ पीछे लोग मुझे दुमुही , कोई  कोई छिपकली भी कहते हैं। क्योंकि घरों के बाहर , खिड़की , दरवाजों पर  घर की बातें सुनना और कभी कभी देखना भी मेरी आदत का हिस्सा हैं।शायद पिछले जन्म में मैं दुमुही ही रही होऊं, इसलिए मीठा बोल कर में ये विश्वास दिला ही देती हूँ कि  मैं दुमुही चुगल खोर ही हूँ। शायद भगवान ने मुझे इसी काम से धरती पर भेजा है,'जो आया जेहि काज से तासों और न होय'  -की उक्ति के अनुसार मुझे यही काम करना है। पता नहीं  किस पुण्य के प्रताप मानव योनि में आना पड़ा , अन्यथा मुझे तो  दुमुही, छिपकली या गिरगिट की योनि में जन्मना चाहिए था। पर ईश्वर के यहाँ देर है अंधेर नहीं। शायद  मेरे इस जन्म के कर्मों से प्रदनन होकर मुझे अगली योनि किसी छिपकली, गिरगिट या  दुमुही साँपिन की मिल जाए।
 
💐शुभमस्तु!
✍🏼©डॉ भगवत स्वरूप"शुभम"

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