मंगलवार, 5 जून 2018

रोज देर से आती हो

तुम  रोज़  देर से आती  हो,
हमें इंतज़ार    करवाती  हो,

तेरे  बिन   नींद  नहीं  आती,
तेरी  थपकी  से   आ जाती,
आँखें  यूँ ही ललिया   जातीं,
तन स्वेद सिक्त कर जाती हो।
तुम रोज़ ....

कभी झलक दिखाती हो अपनी,
कभी पलक  मारती   हो अपनी,
हम समझे तुम   अब आ ही गई
पर  तुरत दूर    भग   जाती हो।
तुम रोज़....

तेरे   बिन     घना    अँधेरा  है,
मच्छर दल   का   भी   डेरा है,
गाना  गाता    वो     कानों   में
तुम    यूँ यूँ यूँ      शरमाती हो।
तुम रोज़ ....

तेरे  बिन   पड़ा    अकेला हूँ,
गर्मी  मच्छर  सब     झेला हूँ,
कितना कितना इंतज़ार करूँ,
तुम बहुत    हमें  तरसाती हो।
तुम रोज़....

 वादा करके  फिर मुकर गई,
सब चेन हमारा   छितर गई,
बेवक्त  हमें    तड़पाती    हो,
लुका  छिपी दिखलाती   हो।
तुम रोज़....

हम    तेरे   भरोसे    के  गुलाम,
अभी बिना छिले रख दिए आम,
मेरी हवा   बंद  कर   देती   हो,
तुम  ही  पंखा    झल  पाती हो।
तुम रोज़....

तू   आये   तो     मैं    खाऊंगा ,
वरना   भूखा     सो    जाऊँगा,
तेरे  बिन  नींद भी क्या   आए ,
तुम भूख प्यास   ले जाती   हो।
तुम रोज़...

पानी  भी    ठंडा   नहीं   किया,
तू  क्या  जाने   मैं कैसे  जिया!
फ्रिज़  भी  तो बन्द पड़ा तब से
तुम झलक दिखा गुम जाती हो।
तुम रोज़...

देखों   मैं   रूठ    ही   जाऊँगा,
पर तेरा   क्या   कर   पाऊंगा?
"शुभम" मनमानी दिखलाती हो
क्यों  ना पायल  छुनकाती   हो!
तुम रोज़...

💐शुभमस्तु!
✍🏼 ©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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