भारतीय मानव जहाँ अत्यंत धर्मिक है , उससे कहीं अधिक वह धर्म भीरु भी है। इसिलए उसमें धर्मांधता का प्रतिशत कई गुना बढ़ गया है। उसे धर्म से इतना अधिक डर लगता है कि वह बिना सोचे-समझे कहीं भी सिर झुकाने को तैयार हो जाता है। अनेक देवी -देवताओं की पैदाइश केवल इंसानी भय से ही हुई है। दो -चार उल्टे सीधे अनगढ़ पत्थर रखकर कहीं भी उसका पूजा स्थल बन जाता है। औऱ मानव की इस मानसिकता का लाभ उठाते हैं ,ठग औऱ शैतानी दिमाग से चलने वाले लोग।
ये शैतान लोग विभिन प्रकार के ढोंग बनाकर आम भीरु मानव को ठगते हैं। कथा , भागवत, धार्मिक पाठ की आड़ में वे न्यूनतम समय में इतना धन कमा लेते हैं कि साल भर बैठ कर ऐश करते हैं। डालडा, देशी घी, रिफाइंड ,सरसों का तेल ,मिठाई, चीनी ,कपड़े,सबसे अधिक पैसा आदि इकट्ठा कर लेते हैं और विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। हवन और यज्ञ के नाम पर अकूत धन इकट्ठा कर धर्म भीरु को ठगा जाता है।धर्म भीरु भी सोचता है कि यदि पैसा , प्रसाद नहीं चढ़ाया तो पता नहीं देवता हमारा क्या अहित कर दें!पचासऔर सौ में जाता भी क्या है!उसकी यही मनोवृत्ति शैतानों को तिजोरियाँ भरने और ऐसे ही कारनामे करने की प्रेरित करती है।परिणामतः धर्म का धंधा फूलने -फलने लगता है। धर्म भीरु इंसान इसके विपरीत इसलिए नहीं सोच सकता क्योंकिं कहीं अहित न हो जाए।' कोई क्या कहेगा '- की मानसिकता उसका मुँह बन्द करके नहीं , मुंह सील बन्द करके रखती है।
इस प्रकारअनेक ठग और शैतान अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों , इष्ट मित्रों आदि से आए दिन ठगी कर रहे हैं। वहाँ न आयकर के छापे का डर है न पुलिस के डंडे का। प्रशासन को तो पता ही नहीं लगता इस सामाजिक और धर्म की आड़ में किए जा रहे शोषण का। जिनका शोषण होता है वे खीर -पूड़ी और पंजीरी खाकर मस्त हो जाते हैं, कहीं कोई विरोध नहीं, केवल धर्मांधता ही धर्मांधता।इस धर्मांधता ने भारतीय सभ्यता औऱ संस्कृति का विनाश किया है और बराबर कर रही है। धर्म के नाम पर सब जायज। इस प्रकार देश का धर्मभीरु मानव चूसा जा रहा है। पर कहीं कोई आहट नहीं, कोई आहत नहीं। धर्म का अन्धा आदमी धर्म को बदनाम कर रहा है। ये सब धर्म नहीं है। ये धर्म की आड़ में पापार्जन है, जिसका दुष्परिणाम उसे निकट भविष्य में भोगना ही पड़ता है।
जब तक पाप का घट पूरी तरह भर नहीं जाता , तब तक भला फूटेगा क्यों और कैसे?
💐शुभमस्तु!
✍🏼©डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
ये शैतान लोग विभिन प्रकार के ढोंग बनाकर आम भीरु मानव को ठगते हैं। कथा , भागवत, धार्मिक पाठ की आड़ में वे न्यूनतम समय में इतना धन कमा लेते हैं कि साल भर बैठ कर ऐश करते हैं। डालडा, देशी घी, रिफाइंड ,सरसों का तेल ,मिठाई, चीनी ,कपड़े,सबसे अधिक पैसा आदि इकट्ठा कर लेते हैं और विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। हवन और यज्ञ के नाम पर अकूत धन इकट्ठा कर धर्म भीरु को ठगा जाता है।धर्म भीरु भी सोचता है कि यदि पैसा , प्रसाद नहीं चढ़ाया तो पता नहीं देवता हमारा क्या अहित कर दें!पचासऔर सौ में जाता भी क्या है!उसकी यही मनोवृत्ति शैतानों को तिजोरियाँ भरने और ऐसे ही कारनामे करने की प्रेरित करती है।परिणामतः धर्म का धंधा फूलने -फलने लगता है। धर्म भीरु इंसान इसके विपरीत इसलिए नहीं सोच सकता क्योंकिं कहीं अहित न हो जाए।' कोई क्या कहेगा '- की मानसिकता उसका मुँह बन्द करके नहीं , मुंह सील बन्द करके रखती है।
इस प्रकारअनेक ठग और शैतान अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों , इष्ट मित्रों आदि से आए दिन ठगी कर रहे हैं। वहाँ न आयकर के छापे का डर है न पुलिस के डंडे का। प्रशासन को तो पता ही नहीं लगता इस सामाजिक और धर्म की आड़ में किए जा रहे शोषण का। जिनका शोषण होता है वे खीर -पूड़ी और पंजीरी खाकर मस्त हो जाते हैं, कहीं कोई विरोध नहीं, केवल धर्मांधता ही धर्मांधता।इस धर्मांधता ने भारतीय सभ्यता औऱ संस्कृति का विनाश किया है और बराबर कर रही है। धर्म के नाम पर सब जायज। इस प्रकार देश का धर्मभीरु मानव चूसा जा रहा है। पर कहीं कोई आहट नहीं, कोई आहत नहीं। धर्म का अन्धा आदमी धर्म को बदनाम कर रहा है। ये सब धर्म नहीं है। ये धर्म की आड़ में पापार्जन है, जिसका दुष्परिणाम उसे निकट भविष्य में भोगना ही पड़ता है।
जब तक पाप का घट पूरी तरह भर नहीं जाता , तब तक भला फूटेगा क्यों और कैसे?
💐शुभमस्तु!
✍🏼©डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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