गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

ताली का रोगी [ कुण्डलिया ]


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सीमा  में   रवि   नित   रहे ,
कवि       क्यों    सीमाहीन ?
मर्यादाएँ               तोड़कर ,
उछल  -  कूद  कपि - मीन।।
उछल   -  कूद  कपि  -मीन,
नियम    की   शाखा तोड़ी।
उलटी     -   सीधी     चाल,
मंच  -     मर्यादा    छोड़ी।।
'शुभम '    न  समझें   बात ,
तेज   या  कह  लो  धीमा।
अहंकार          में      लीन ,
तोड़ता  है    कवि सीमा।।1।।

सीमा     सबकी   नियत  है,
कवि   क्यों   करता   पार ?
सीमा     के   पालन  बिना ,
नहीं        मिले       उद्धार।।
नहीं       मिले         उद्धार,
क्षम्य   कवि   की मनमानी।
होती      कभी      न    बंधु  ,
तुम्हारी         खींचातानी।।
'शुभम '      साधना   काव्य ,
नहीं        है     कोई     बीमा।
मात्र           प्रशंसा  -  चाह,
न तोड़ो कवि जी सीमा।।2।।

डाली   -   डाली     कूदकर ,
कपि   करता     खिलवाड़।
कभी    आम्रफल    तोड़ता ,
कभी       खींचता     झाड़।।
कभी        खींचता     झाड़,
नीड़      के    फोड़े     अंडा।
नियम       नहीं      कानून ,
नहीं      निर्धारित    फंडा।।
'शुभम '   न कपि की नीति,
न   बजवा   अपनी   ताली।
उछल  -    कूद     को   छोड़,
मूढ़   कवि डाली -  डाली।।3।।

ताली     का   रोगी     हुआ ,
अब   का      कवि   संसार ।
जीता     ताली    के     लिए,
कविता          हो     बेकार।।
कविता          हो       बेकार,
भले   ही    एक      लतीफ़ा।
केवल        फूहड़      हास ,
बन    गए   मंच - ख़लीफ़ा।।
'शुभम '  काव्य    का  चोर ,
लूटता     भर - भर   थाली।
जब       वह   पकड़ा    जाय,
शांत   हो    जाती ताली।।4।।

खेल  नहीं   कविता -सृजन,
नहीं     शब्द  -   खिलवाड़।
हित -   भावों   की  साधना ,
भाव  -  उदय     की  बाड़।।
भाव  -  उदय    की   बाड़,
छंद    के     बंध    निराले।
लय    का    सरल   प्रवाह,
कला     की   छैनी   ढाले।।
'शुभम '   समझकर  खेल,
तू    मत    कर   रेलमपेल।
तप    है   कविता     मीत,
ये  नहीं   बालपन- खेल।।5।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

04.02.2020◆2.15 अपराह्न।

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