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सीमा में रवि नित रहे ,
कवि क्यों सीमाहीन ?
मर्यादाएँ तोड़कर ,
उछल - कूद कपि - मीन।।
उछल - कूद कपि -मीन,
नियम की शाखा तोड़ी।
उलटी - सीधी चाल,
मंच - मर्यादा छोड़ी।।
'शुभम ' न समझें बात ,
तेज या कह लो धीमा।
अहंकार में लीन ,
तोड़ता है कवि सीमा।।1।।
सीमा सबकी नियत है,
कवि क्यों करता पार ?
सीमा के पालन बिना ,
नहीं मिले उद्धार।।
नहीं मिले उद्धार,
क्षम्य कवि की मनमानी।
होती कभी न बंधु ,
तुम्हारी खींचातानी।।
'शुभम ' साधना काव्य ,
नहीं है कोई बीमा।
मात्र प्रशंसा - चाह,
न तोड़ो कवि जी सीमा।।2।।
डाली - डाली कूदकर ,
कपि करता खिलवाड़।
कभी आम्रफल तोड़ता ,
कभी खींचता झाड़।।
कभी खींचता झाड़,
नीड़ के फोड़े अंडा।
नियम नहीं कानून ,
नहीं निर्धारित फंडा।।
'शुभम ' न कपि की नीति,
न बजवा अपनी ताली।
उछल - कूद को छोड़,
मूढ़ कवि डाली - डाली।।3।।
ताली का रोगी हुआ ,
अब का कवि संसार ।
जीता ताली के लिए,
कविता हो बेकार।।
कविता हो बेकार,
भले ही एक लतीफ़ा।
केवल फूहड़ हास ,
बन गए मंच - ख़लीफ़ा।।
'शुभम ' काव्य का चोर ,
लूटता भर - भर थाली।
जब वह पकड़ा जाय,
शांत हो जाती ताली।।4।।
खेल नहीं कविता -सृजन,
नहीं शब्द - खिलवाड़।
हित - भावों की साधना ,
भाव - उदय की बाड़।।
भाव - उदय की बाड़,
छंद के बंध निराले।
लय का सरल प्रवाह,
कला की छैनी ढाले।।
'शुभम ' समझकर खेल,
तू मत कर रेलमपेल।
तप है कविता मीत,
ये नहीं बालपन- खेल।।5।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
04.02.2020◆2.15 अपराह्न।
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