गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

ग़ज़ल


  
गंगा  के   जल में  बूँद  शराब  हो जैसे।
सियासतदां  अदीब में धुँआब हो जैसे।।

ऊपरी   तौर    से   कहते  हैं बुरा  -बुरा,
सियासत     ही    दिली  ख्वाब हो जैसे।

गीत    गाते   हैं सियासतदां जन का,
किसी नेता का ऊपरी दवाब हो जैसे।

मुल्क चलता नहीं है सियासती चालों से,
अभागे    मुल्क  का  अज़ाब  हो जैसे।

खुदा की तरह न समझें 'शुभम 'इनको,
हर   भलाई    से   इन्हें  दुराव  हो जैसे।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

01.02.2020◆7.0अपराह्न.

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