सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

ग़ज़ल

✍रचयिता ©   
🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'  
हमने     जाती      बहार   को देखा।
फूल,  कलियों   को खार  को देखा।।

पड़    गए    पीत    नीम  के पल्लव,
ऐसे     पत्तों   की   धार    को देखा।

खिल  गए जब    गुलाब  गालों  के ,
आँख    में    फिर   ख़ुमार  को देखा।

जिसने     पुतले   बनाये   माटी के,
किसने   ऐसे     कुम्हार    को देखा।।

रब    की   कारीगरी    अजब  देखी,
ढार   को    देखा  उभार  को देखा।

जान   के   बिन  ये जिस्म क्या यारो,
रब    के   उस   चमत्कार   को देखा।

कौन कहता है  'शुभम'  रब है नहीं,
उसके   इंसा    से प्यार     को देखा।।

💐 शुभमस्तु !

08.02.2020◆7.15अप.।

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