शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

ग़ज़ल


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✍शब्दकार©
☘ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जुल्मते   -    श ब है   शरमाते   क्यों हो !
लब   में   लब    है    फ़रमाते  क्यों हो !!

सभी      को    यक़ीन      है     जो होना है,
हमसे     इतना    दूर   भी   जाते क्यों हो!

मुहज्जब     उसूल     है    ये    तहज़ीब का,
ओट      में    जो    हो   ले , बताते क्यों हो!

खुलेआम      की     तहज़ीब    इंसानी नहीं,
इस       तरह   आग़ोश  में   आते क्यों हो!

सिलवटें  बिस्तर की क्या कुछ छिपा पाएँगीं, 
शरमा    के    'शुभम'    यों छिपाते क्यों हो!!

जुल्मते-शब = रात का अँधेरा
मुहज्जब    =सभ्य
उसूल =सिद्धांत 
तहज़ीब =शिष्टचार।

💐 शुभमस्तु !

17.02.2020◆8.15 अपराह्न।

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