शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

ऋतुराज वसंत [ चौपाई ]


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✍शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ऋतु   वसंत  की जब से आई।
कोंपल  लाल अधर मुस्काई।।

वन - बागों में कलियाँ  फूलीं।
तितली पी मादक मधु भूली।।

गेंदा   और   गुलाब  महकते।
वन  में टेसू - सुमन दहकते।।

महुए भी   कुचियाए   प्यारे।
टपकें टप -टप वे भिनसारे।।

हुए निर्वसन मधुक ,पलाशा।
बँधी नारि नर की मधु आशा।

जब   निशीथ की वेला  आई।
महुआ  सुमन  रहे  टपकाई।।

महकी  धरती महुआ तरु तर।
फूल    बीनते  टपके   भूपर।।

कोयल  कूक लगे अति प्यारी।
विरहिन के उर हूक निखारी।।

फ़ाग - उमंग  उरों  में   भारी।
नर - नारी तन भरी ख़ुमारी।।

लाल    कोंप पीपल की बोली।
आओ    नेह  करें  हमजोली।।

गेंदा,    गेंदी   से    बतियाए।
संग  पवन   के गले  लगाए।।

सुर्ख  गुलाब  भ्रमर मँडराया।
बार - बार मकरंद  छकाया ।।

पादप   आम   बहुत  बौराए।
झुंड भ्रमर , तितली के छाए।।

पीली  - पीली  सरसों   फूली।
खेतों  में  बयार  सँग   झूली।।

राग - रंग  का   उत्सव  होली।
देवर -  भाभी  करें  ठिठोली।।

कामदेव    का   सुत  जन्मा  है।
युग - युग से वसंत-महिमा है।।

कोयल   गाती   पवन झुलाती।
वसन  सुमन  के नित पहनाती।

नव  पल्लव  का बना पालना।
प्रकृति   अंक में झुला डालना।

शिव  की रात्रि ,पंचमी , होली।
प्रकृति -  सुंदरी चोली खोली।।

कामदेव  - शर  मारक मोहन।
नर - नारी में अति सम्मोहन।।

ऋतुओं    का  राजा  वसंत है।
महिमा -  वर्णन  भी अनंत है।।

💐शुभमस्तु !

20.02.2020★5.50 अप.

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