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✍ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कामदेव - रति के
घर जाया
प्रकृति के आँगन
वातावरण सुहाया,
मनभाया ,
सुत वसंत
है आया।
स्वागत हित
जड़ -चेतन सारे,
बूढ़े जर्जर
पीले पल्लव में
अविरत पतझर,
नव कोंपल
पुष्पित कलियाँ,
किसलय
वन -उपवन की
वीथी ,गलियाँ,
करतीं रंगरलियाँ।
पल्लव -दल निर्मित
पालना,
वसन सुमनों के ,
लोरी सुना रही भ्रमरी,
कोयल की
मधु मादक स्वर लहरी,
गेंदा ,डहेलिया,
गुलदाउदी ,गुलाब,
सुमन सरसों के,
आमों के बौर ,
झुंड भ्रमरों के
गुन -गुन गाते
संगीत मधुर।
सद -सुगंध फैलाते
मद में भर -भर जाते,
डाल -डाल पर सुमन,
सभी अति प्रमन,
नमन ,वंदन,
अभिनंदन में लगन।
नाच उठा कचनार,
बैंजनी फूलों की
झोली भर -भर,
नर्तित खेतों में
सरसों अरहर,
मतवाला चना
हिलाकर शीश,
दे रहे सब
सुत वसंत को
शुभ -आशीष।
रंग -बिरंगी
पहन शाटिका
तितली मतवाली ,
झूमे डाली -डाली,
काम का वेग
थामने,
बहाना होली का ,
रंग रोली का,
फाग कबीरा गाए,
रंग खूब बरसाए,
गुलाल , अबीर
ललाट पर
अम्बर में छाए,
चंदन शीतलता लाए,
भाभी -देवर सँग
गुपचुप बतलाए,
रतिपति की महिमा के
शृंगार सजाए।
'शुभम' प्रतीक्षा
प्रियतम की करती
विरहिन
कैसे इतराए?
बल -बल खाए,
सजनी -साजन
तन -मन के
एकांत सजाए,
रति -कामदेव -घर
वसंत सुत आए।
💐 शुभमस्तु !
20.02.2020■6.15 अप.
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