★★★★★★★★★★★
✍रचयिता ©
🌻 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
★★★★★★★★★★★
ऋतु वसंत की फिर से आई।
कली- कली हर्षित मुस्काई।।
सेमल , बरगद फूले - फूले।
कचनारों पर भौंरे झूले।।
अमुआ की डाली बौराई।
ऋतु वसंत की फिर से आई।।
भीनी - भीनी महक लुटाती।
खेतों में सरसों छा जाती।।
पीली - पीली छटा सुहाई।
ऋतु वसंत की फिर से आई।।
पीली चादर ओढ़ खड़े हैं।
कीकर पादप बड़े - बड़े हैं।।
मधुमक्खी उन पर मंडराई।
ऋतु वसंत की फिर से आई।।
क्यारी में गुलाब मुस्काता।
गेंदा झूम - झूम इठलाता।।
भौंरों की टोली गुंजाई।
ऋतु वसंत की फिर से आई।।
गेहूँ , चना , मटर , जौ मनहर।
झूम उठे खेतों में सुंदर।।
हवा बही बाली लहराई।
ऋतु वसंत की फिर से आई।।
रह - रह अरहर झूम रही है।
तितली मधुरस चूम रही है।।
'शुभम' सरसता जन-जन भाई ।
ऋतु वसंत की फिर से आई।।
💐शुभमस्तु !
09.02.2020◆4.30 अप.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें