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✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कवियों का कैसा हो वसंत।
भावित भावों से प्राणवंत।।
अक्षर - अक्षर की खिले कली।
श्रुति में शब्दों की घुले डली।।
वाक्यों की शाखा हों अनन्त।
कवियों का कैसा हो वसंत।।
हो छन्दयुक्त या छंदमुक्त।
जनजीवन का या स्वयंभुक्त।।
फैले कविता-यश दिग दिगंत।
कवियों का कैसा हो वसंत।।
जन गण मन को हितकारी हो।
निज राष्ट्र धर्म - उपकारी हो।।
बन जाय संत जो हो असंत।
कवियों का कैसा हो वसंत।।
लय, ताल, गेयता की पायल।
कर दे न मृदुल उर को घायल
नीला अम्बर हो नादवंत।
कवियों का कैसा हो वसंत।।
भौंरे की कवि-स्वर में गुनगुन।
कोयल की तानों की हो धुन।।
कवि हो धरती का'शुभम' संत।
कवियों का कैसा हो वसंत।।
💐 शुभमस्तु !
10.02.2020◆5.15अप.
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