सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

कवियों का कैसा हो वसंत [ गीत ]


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✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कवियों   का  कैसा  हो वसंत।
भावित भावों   से  प्राणवंत।।

अक्षर - अक्षर की खिले कली।
श्रुति में शब्दों की घुले डली।।
वाक्यों की शाखा हों अनन्त।
कवियों  का कैसा हो वसंत।।

हो   छन्दयुक्त  या  छंदमुक्त।
जनजीवन का या स्वयंभुक्त।।
फैले कविता-यश दिग दिगंत।
कवियों  का   कैसा हो वसंत।।

जन गण मन  को हितकारी हो।
निज   राष्ट्र धर्म - उपकारी हो।।
बन   जाय  संत जो हो असंत।
कवियों   का    कैसा हो वसंत।।

लय, ताल, गेयता  की पायल।
कर दे  न मृदुल उर को घायल
नीला   अम्बर   हो    नादवंत।
कवियों   का कैसा हो वसंत।।

भौंरे की कवि-स्वर में गुनगुन।
कोयल  की तानों की हो धुन।।
कवि  हो धरती का'शुभम' संत।
कवियों   का   कैसा हो वसंत।।

💐 शुभमस्तु !

10.02.2020◆5.15अप.

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