गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

आप ही आप [ अतुकान्तिका ]


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✍ शब्दकार  ©
🌻 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जब पड़ी
हाथ की थाप,
बोल ही पड़ी
ढोलक बस
आप , आप ही आप,
आप ही आप,
आप ही आप,
गूँजता 
श्रुतियों में संगीत
आप ही आप,
हृदय को करती
झंकृत,
धमकती ध्वनि की
तंत्री 
आप ,
आप ही आप।

वसन्ती ऋतु का
वासन्ती नाद,
ग्रहण करते हैं कान,
करते संवाद,
मौन ही
बिना विवाद,
कौन होता 
सुनकर नाशाद!
ढोल का
माधुर्य भरा
संवाद
आप ही आप।

हवाएँ दूषित
लगतीं काँप,
छोड़तीं ऊष्मित
धुँधली भाप,
होलिका के
फागों का ताप,
बरसता 
 ब्रज वनिता के साथ,
निकल पड़ती 
कान्हा की
पिचकारी
बरसात ,
आप ही आप।

हृदय में उठती
मृदुल हिलोर ,
भिगोती 
तन -मन के
सब छोर ,
नाचते वन में
कितने मोर !
साँझ या भोर ,
कलेजे में
चिंहुँकी रोर 
बड़ी बरजोर
आप ही आप।

वनस्पतियों में
नर , पतियों में
काम या रतियों में,
नवल उल्लास,
कहाँ है कोई 
आज उदास,
समर्पित साँस ,
सँजोती सपने
आप ही आप।

'शुभम' जड़ -चेतन ,
पशु -पक्षी 
लता विटप 
ढोल वंशी ढप ,
मृदंग मंजीर,
किंकिणि पायल ,
गले के हार,
जल , थल , नभचर,
एक रस - राग ,
आया है आया है
ऋतुराज,
स्वागत में 
सब खड़े ,
अभिनंदन करने ,
गुलमुहर अमलतास,
आप ही आप,
आप ही आप।।

💐 शुभमस्तु !

13.02.2020 ◆4.45अप.

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