शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

श्याम की होरी [ सवैया ]


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 ✍ शब्दकार ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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                    1
'प्रिय   राधे   चलौ  जमुना तट पै,
तहँ      रंग सों खेलहिंगे हम होरी।
नव    कंचुकी   देह   पै  धारि चलौ,
लहँगा   -  चुनरी  हू रहें तव कोरी।।
पिचकारी      हमारी  धरी भरिकें,
बाँधहु      निज छोर में चंदन रोरी।
तुम       आगें चलौ  हम  आय रहे,'
मुस्काय कें मानि गई सखि भोरी।।

                    2
'गोरे     तव     गाल   गुलाल  मलूँ,
बिन   रंग  लगाए  न  जावन दैहौं।
नख   से शिख लों तोहि बोरि  दऊँ,
जमुना - जलधार  में जाय कें नैहों।।'
'मति       गाल    मसोसौ  हमारे इते,
वे      देखिहें  तौ  कत  बात बतैहों।
चुनरी     सिग   स्याम   भिगोइ दई,
घर  जात  लजात  हों अँखि बचैहों।।'

                3
सखि    !  फ़ागुन  मास लगौ जब तें,
घनस्याम    भए   मतवारे  हमारे।
धरि   हाथनु   रंग   गुलाल  फिरें  ,
शुभ     औसर   ढूँढि   रहे भिनसारे।।
बारहों         मास   करें    रस - रंग ,
फगुआ       में  उठी  मन चंग पियारे।
कुंज      गली  में  जौ  मिलि औचक,
भए गाल   गुलाल  बिना रङ्ग डारे।।

                 4
ब्रज  ग्वालनु  - ग्वालिनि के सँग में,
घनस्याम        मचाय    रहे    होरी।
मुख         लीपि   भए   बदरंग  सबै,
रंग      बोरि   दई    साँवरि - गोरी।।
ढप ,  ढोल ,   मृदंग      बजाय  रहे,
लय - ताल  सों   नाचि   रही भोरी।
छवि , छींट   की   छाय रही पटुका,
करि     स्याम   रहे   जोरा - जोरी।।

                 5
 भीजि     गई     अँगिया   सिगरी,
रंगरसिया    घनस्याम    न मानें।
लहँगा -     चुनरी    लिपटे  तन सों,
जिद   होरी  की ठानि  लई  जानें।।
जब     घेरि    लए   ब्रजवीथिन में ,
नचिवे      की   सँग  स्यामजू  ठानें।
अपनी     , अपनी  , अपनी  ही रटें,
अपनी  रहै सेर आपनि ज़िद ठानें।।

💐 शुभमस्तु !

25.02.2020 ◆ 9.15 अप.

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