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✍ शब्दकार©
🌾 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपनी ग़लती का यहाँ एहसास है किसको !
फूल खिलते क्यों नहीं आभास है किसको !!
डालना मत हाथ बेबस के गरेबाँ पर तू ,
इस जहाँ में प्यार,वफ़ा रास है किसको!
अपनी नज़रों के तले अंधे हुए हैं हम,
कुछ नज़ र आता नहीं उजास है किसको।
नज़ारा करती है दुनिया गमों का क्या करें,
अँधेरे शहर में उजाला पास है किसको!
हमारे घर का जोगी जोगना होता यहाँ,
'शुभम' जज़्बात का उसके कयास है किसको!
💐 शुभमस्तु !
16.02.2020 ■ 12.20 अप.
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