शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

रंग -तरंग [ अतुकान्तिका]


★★★★★★★★★★★★★★
✍ शब्दकार©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
★★★★★★★★★★★★★★
 फ़ागुन मास 
रंगों का रास
मन में उल्लास
मलयानिल सुवास
नेह के अनुप्रास
भौजी देवर हास
सजन सजनी पास
आया आया मधुमास।

रंगों की होली
चंदन गुलाल रोली
प्यार भरी ठिठोली
कोई चालाक कोई भोली
उफ़न हुलसाती चोली
कुंज-कोयलिया बोली
विरहिन उदास हो ली
कैसे खेलेगी होली !

करता है तंग
उर उठती तरंग
बेदर्द ये अनंग
सजन नहीं संग
बजे ढप ढोल मृदंग
बदले प्रकृति के रंग
कूदे मन के कुरंग
बदले -बदले हैं ढंग।

बहती पछुआ बयार
छाया देह में खुमार
मधुमास की बहार
करे साजन मनुहार
आओ करें प्यार- प्यार
नहीं कल को उधार
गले बाँहें निज डार
मार डाले न मार।

झूमे डाल -डाल 
मस्त सरसों के हाल
नाचे गेहूँ की बाल 
ताना मन्मथ ने जाल
चमकी चिकनी हर खाल
गेंदा ,गेंदी गुलाब
चंदन रोली गुलाल
देख ठूँठों के कमाल!

बौरे -बौरे हैं आम
भौंरे ,तितली पैगाम
देते नित्य सुबह-शाम
नहीं पल को विश्राम
फूल फूलते अनाम
सारी सृष्टि है सकाम
है  किसको विराम
महुए कुचिआए अविराम।

होठ   पीपल के लाल
ब्रज में उड़ता गुलाल
नारि-  नर-नृत्य-ताल
छूट गई शुष्क छाल
बदली यौवन की चाल
'शुभम' देखता बेहाल 
कैसा काम का कमाल?
उठा मन में सवाल ।।

💐 शुभमस्तु !

27.02.2020◆ 7.55अप.

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