गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

पीला रंग है ज्ञान का [ कुण्डलिया ]


◆●◆●◆◆●◆●◆●◆●◆●◆
✍ शब्दकार©
🌾 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●

पीली    सरसों    खेत    में,
नाच   रही     चहुँ     ओर।
मानो      पीली    शाटिका,
लहराती             पुरजोर।।
लहराती              पुरजोर,
चढ़ी   है  नयन   - खुमारी।
कामदेव       की         टेर ,
कर    रही   रती   कुमारी।।
'शुभम'       झुका  आकाश,
ओढ़कर    चादर     नीली।
इठलाती        है      भूमि,
धारकर    साड़ी  पीली।।1।।

पीले      पल्लव   झर    रहे,
बिखरी  -     बिखरी   छाँव।
उधर     लाल  कोंपल  उगीं,
निखरे  -    सुथरे     गाँव।।
निखरे   -    सुथरे     गाँव,
नया   जीवन    है   आया।
गोरस        देती        गाय ,
समा   शोभन   मनभाया।।
'शुभम'  सुखद  ऋतुराज,
होलिका  -  गीत     सुरीले।
कानों  में  रस   घोल  रहे ,
भौंरे     पट       पीले।।2।।

पीले   -  पीले    वसन  धर,
आए         हैं        ऋतुराज।
स्वागत   करने   के    लिए ,
खूब     सजाया       साज।।
खूब      सजाया        साज,
देह     फूलों    से   महकी।
गाते           भँवरे       गान,
गूँज  कोकिल  की चहकी।।
गेंदा   'शुभम'     गुलाब,
पुहुप       कचनारी    नीले।
ईख     दे      रही     सीख ,
भरो  रस  पीले -  पीले।।3।।

पीला     रंग    है   ज्ञान का ,
देता          सीख      वसंत।
 वसन  ,मुकुट  सब  पीत हैं,
ऐसा     ऋतुपति    कन्त।।
ऐसा     ऋतुपति      कन्त,
महकता    कली- फूल में।
नहीं        कभी       दुर्गंध ,
दे  रहा    कभी    भूल में।।
'शुभम '      संत   का  गात,
न    ढँकता     काला, नीला।
चीवर           रंगता      पीत,
ज्ञान  का  शुभ  रंग पीला।।4।।

पी ली    जिसने   प्रेम  की ,
कलशी       भर     आकंठ।
उसे   कौन जन कह  सका,
अज्ञानी      या          लंठ।।
अज्ञानी      या           लंठ,
प्रेमऋतु        मनभाई     है।
नर -   नारी         तरु - बेल ,
परस्पर         लिपटाई      है।। .
 'शुभम'        सृजन  का  सार,
जिंदगी         उसने      जी  ली।
होता        उर      का      नेह ,
माधुरी   जिसने  पी   ली।।5।।

💐 शुभमस्तु !

11.02.2020 ◆6.30अप.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...