शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

कवि से पृच्छा [ गीत ]


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✍ शब्दकार ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गीत     तुम सद्भावना  के  गा रहे हो।
आचरण  में भी  कभी क्या ला रहे हो??

खेलते    हो  शब्द से ,  गिल्ली बनाकर।
डोलते हो     मूस की  बिल्ली सजाकर।।
स्वप्न किसको मधुरतम दिखला रहे हो?
गीत    तुम  सद्भावना    के   गा रहे हो।।

व्याकरण   में ढालकर तुम सृजन करते।
भक्ति में भगवान की तुम भजन करते।।
सो    रहा    भूखा  कोई  तुम खा रहे हो।
गीत    तुम      सद्भावना  के   गा रहे हो।।

वर्तनी     की  नाक    टेढ़ी   हो  न जावे।
छंद   की  कटि  अंश भी लचने न पावे।।
भंगिमा   कृत्रिम   सभी , नचवा रहे हो।
गीत   तुम   सद्भावना    के    गा रहे हो।।

आभूषणों  के  बोझ  से कविता थकी है।
हृदय   तल   से  दूर है धी में रुकी  है।।
भाव के  भँवरों  में  क्यों भटका रहे हो?
गीत  तुम  सद्भावना  के   गा रहे हो।।

कथनी तुम्हारी और  करनी भिन्न क्यों है?
गीत   तेरे   कर्म  से   विच्छिन्न क्यों हैं??
कागजों   के    फूल   क्यों महका रहे हो ?
गीत    तुम     सद्भावना    के    गा रहे हो।।
💐शुभमस्तु !

19.02.2020★7.10अपराह्न।

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