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✍रचयिता©
🍀 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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श्रीमती शिशिरावती,
का यह देखो हाल।
धीरे - धीरे जा रही ,
टेढ़ी - मेढ़ी चाल।।1।।
पीठ माघ की ओर है,
मुख फ़ागुन की ओर।
गर्म दुपहरी शिशिर की,
ठंडी - ठंडी भोर ।।2।।
शुभागमन ऋतुराज का ,
पीहर शिशिर पयान।
फूलों पर भौंरे करें ,
अपने मधुर बयान।।3।।
लाज लग रही शिशिर को ,
जब आए ऋतुराज।
मुड़ - मुड़ पीछे देखती,
रख वसंत सिर ताज।।4।।
फूलों के ही बाण हैं,
फूलों सजी कमान।
कामदेव रति से कहें ,
'चलो करें संधान'।।5।।
पीले पल्लव झर रहे,
झोंका आया तेज।
धरा स्वच्छ नित हो रही ,
बनी वसन्ती सेज ।।6।।
गेंदा सुमन गुलाब की ,
चटकीं कलियाँ मंद।
तितली , भौंरे झूमते ,
पीते नव मकरंद।।7।।
यदि दुराज होता कहीं ,
जनता को दुख भीत।
माघ मास के अंत में ,
दुसह उष्णता - शीत।।8।।
फ़ागुन लाया फाग सँग,
चंदन , रंग , अबीर।
वन में टेसू फूलते ,
गाते लोग कबीर।।9।।
ढप , ढोलक , करताल का ,
समा बंधा हर ओर।
नारी - पग पायल बजे ,
किंकिणि करती शोर।।10।।
दो ऋतु की वयसंधि की,
हलचल दिन हर रात।
'शुभम' विदा पल शिशिर के,
वासन्ती है रात।।11।।
💐शुभमस्तु !
09.02.2020 ●3.30 अप.
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