सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

ऋतुओं की वयःसंधि [ दोहा ]


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✍रचयिता©
🍀 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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श्रीमती           शिशिरावती,
का   यह      देखो      हाल।
धीरे  -   धीरे     जा     रही ,
टेढ़ी   -   मेढ़ी    चाल।।1।।

पीठ    माघ   की    ओर   है,
मुख     फ़ागुन    की   ओर।
गर्म  दुपहरी     शिशिर  की,
ठंडी    -   ठंडी   भोर ।।2।।

शुभागमन     ऋतुराज    का ,
 पीहर        शिशिर    पयान।
फूलों    पर     भौंरे        करें ,
अपने    मधुर     बयान।।3।।

लाज  लग  रही  शिशिर  को ,
जब        आए      ऋतुराज।
मुड़ -  मुड़    पीछे     देखती,
रख  वसंत  सिर ताज।।4।।

फूलों    के    ही    बाण    हैं,
फूलों       सजी       कमान।
कामदेव     रति     से   कहें ,
'चलो       करें    संधान'।।5।।

पीले  पल्लव     झर      रहे,
झोंका       आया         तेज।
धरा  स्वच्छ नित   हो   रही ,
बनी  वसन्ती     सेज ।।6।।

गेंदा  सुमन     गुलाब    की ,
चटकीं       कलियाँ       मंद।
तितली   ,   भौंरे        झूमते ,
पीते      नव    मकरंद।।7।।

यदि    दुराज    होता   कहीं ,
जनता   को    दुख      भीत।
माघ   मास    के     अंत में ,
दुसह     उष्णता - शीत।।8।।

फ़ागुन   लाया     फाग सँग,
चंदन ,     रंग ,        अबीर।
 वन    में      टेसू     फूलते ,
गाते     लोग     कबीर।।9।।

ढप , ढोलक ,  करताल का ,
समा    बंधा      हर    ओर।
नारी  - पग     पायल  बजे ,
किंकिणि  करती शोर।।10।।

दो    ऋतु की   वयसंधि   की,
हलचल     दिन     हर    रात।
'शुभम'   विदा पल शिशिर के,
वासन्ती       है     रात।।11।।

💐शुभमस्तु !

09.02.2020 ●3.30 अप.

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