शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

घट-घट वासी राम 🫐 [ दोहा ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

घट-घट जिसका वास है,उसका घट इंसान।

घट टूटा माटी बना,बिखर गए सब   धान।।


हर घट माटी से बना,प्रभु के यहाँ  न  भेद।

माटी में घट जा मिले, हो जाता जब छेद।।


घट आया  प्रभु  धाम से,बना गलीचा  टाट।

कर्त्ता को भूला हुआ,जा पहुँचा जब घाट।।


माटी में  जब  प्राण का,हुआ पूर्ण  संचार।

माटी  इतराने  लगी,सोचे बिना   विचार।।


माटी  से  गागर  बनी,करती शीतल  नीर।

छोटी  गागर  देखकर,  वह निर्मम  बेपीर।।


रेशा-रेशा  जोड़कर,रज्जु बनी नव    एक।

ताकत बढ़ती जानकर, ऐंठन भरी अनेक।।


ऊपर  बैठा  देखता,   रचना निज  घटकार।

घट  इतराता  ऐंठता,  देता चुपचुप  मार।।


भूल  गया घट घाट ही,उसकी मंजिल एक।

घटिया सबको जानता, खोकर मूढ़ विवेक।। 


घट का उद्भव भूमि पर,घटना एक महान।

पर घट भूला आप में,पहुँचा घाट मसान।।


घट - घट  वासी  एक है, कहलाता  है   राम।

आता  घट संसार में,दिखता उसको   काम।।


घट से मरघट का सफ़र,नहीं जानता जीव।

चिड़ियाँ खेती चुग गईं,क्यों रटता अब पीव!!


🪴 शुभमस्तु !


३०.०४.२०२१◆३.४५पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...